________________
स्थान १०
३६१
बाला किड्डा य मंदा य बला पण्णा य हायणी ।
पवंचा पब्भारा य, मुम्मुही सायणी तहा ॥ १३८॥ कठिन शब्दार्थ - दस दसमिया - दश दशमिका, दसाओ - दशाएं, किड्डा - क्रीडा, पवंचा - प्रपञ्चा, पम्भारा - प्राग्भारा, सायणी - शायनी (स्वापिनी)।
भावार्थ - दशदशमिका भिक्षुपडिमा एक सौ रात दिन में पूरी होती है और इस में पांच सौ पचास दत्तियाँ होती है । इस प्रकार सूत्रानुसार इस पडिमा का आराधन और पालन किया जाता है ।
दस प्रकार के संसारी जीव कहे गये हैं यथा - प्रथम समय एकेन्द्रिय, अप्रथम समय एकेन्द्रिय यावत् अप्रथमसमय पञ्चेन्द्रिय। दस प्रकार के सर्व जीव कहे गये हैं यथा - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय और अनिन्द्रिय - सयोगी केवली और सिद्ध भगवान् । अथवा दूसरे प्रकार से दस प्रकार के सर्वजीव कहे गये हैं यथा-प्रथमसमय नैरयिक अप्रथम समय नैरयिक यावत् अप्रथम समय देव, प्रथमसमय सिद्ध और अप्रथमसमय सिद्ध ।
सौ वर्ष की उम्र वाले पुरुष की दस दशाएं - अवस्थाएं कही गई हैं यथा - १. बाल अवस्था - उत्पन्न होने से लेकर दस वर्ष तक का प्राणी बाल कहलाता है । इसको सुख दुःखादि का तथा सांसारिक बातों का विशेष ज्ञान नहीं होता है अतः यह बाल अवस्था कहलाती है । २. क्रीड़ा - यह दूसरी अवस्था क्रीड़ा प्रधान है अर्थात् इस अवस्था को प्राप्त कर प्राणी अनेक प्रकार की क्रीडाएं करता है किन्तु कामभोगादि की तरफ उर की तीव्र बुद्धि नहीं होती है । ३. मन्द अवस्था - विशिष्ट बलबुद्धि के कार्यों में असमर्थ किन्तु भोगोपभोग की अनुभूति जिस अवस्था में होती है उसे मन्द अवस्था कहते हैं । इस अवस्था को प्राप्त होकर पुरुष अपने घर में विदयमान भोगोपभोग की सामग्री को भोगने में समर्थ होता है किन्तुं नये भोगादि को उपार्जन करने में मन्द यानी असमर्थ होता है । इसलिए इसे मन्द अवस्था कहते हैं । ४. बला अवस्था - यह चौथी अवस्था है । इसे प्राप्त होकर पुरुष अपना बल पुरुषार्थ दिखाने में समर्थ होता है । ५. प्रज्ञा - पांचवीं अवस्था का नाम प्रज्ञा है । प्रज्ञा बुद्धि को कहते हैं । इस अवस्था को प्राप्त होने पर पुरुष में अपने इच्छितार्थ सम्पादन करने की तथा अपने कुटुम्ब की वृद्धि करने की बुद्धि उत्पन्न होती है । ६. हायणी या हापणी - इस अवस्था को प्राप्त होने पर पुरुष की इन्द्रियाँ अपने अपने विषय को ग्रहण करने में किञ्चित् हीनता को प्राप्त हो जाती है । इस कारण से इस अवस्था को प्राप्त पुरुष कामभोगादि के अन्दर किञ्चित् विरक्तिभाव को प्राप्त हो जाता है। इसीलिए यह दशा हापणी या हायणी कहलाती है। ७. प्रपञ्चा - इस अवस्था में पुरुष की आरोग्यता गिरने लग जाती है और खांसी आदि रोग आकर घेर लेते हैं। ८. प्राग्भारा - इस अवस्था में पुरुष का शरीर कुछ झुक जाता है। इन्द्रियाँ शिथिल पड़ जाती है। स्त्रियों का अप्रिय हो जाता है और बुढापा आकर घेर लेता है। ९. मुम्मुही - जरा रूपी राक्षसी से समाक्रान्त पुरुष इस नवमी दशा को प्राप्त होकर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org