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________________ स्थान १० - ३५९ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 प्राणत तथा अच्युत 1 इन देवलोकों में दस इन्द्र होते हैं यथा - शक्र ईशानेन्द्र यावत् अच्युतेन्द्र । इन दस इन्द्रों के दस परियान विमान कहे गये हैं यथा - पालक, पुष्पक यावत् विमलवर, सर्वतोभद्र । - विवेचन - गत उत्सर्पिणी काल के दस कुलकर - जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में गत उत्सर्पिणी काल में दस कुलकर हुए थे। विशिष्ट बुद्धि वाले और लोक की व्यवस्था करने वाले पुरुष विशेष कुलकर कहलाते हैं। लोक व्यवस्था करने में ये हकार, मकार और धिक्कार आदि दण्ड नीति का प्रयोग करते हैं। अतीत उत्सर्पिणी के दस कुलकरों के नाम इस प्रकार हैं - - १. शतंजल २. शतायु ३. अनन्तसेन ४. अमितसेन ५. तक्रसेन ६. भीमसेन ७. महाभीमसेन ८. दृढरथ ९. दशरथ और १०. शतरथ। । आगामी उत्सर्पिणी काल के दस कुलकर - जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में दस कुलकर होंगे उनके नाम इस प्रकार हैं - १. सीमंकर २. सीमंधर ३. क्षेमंकर ४. क्षेमंधर ५. विमल वाहन ६. संमुचि ७. प्रतिश्रुत ८. दृढधनुः ९. दशधनुः और १०. शतधनुः। . दस वक्खार पर्वत - जम्बूद्वीप के अन्दर मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महा नदी के दोनों तटों पर दस वक्खार (वक्षस्कार) पर्वत हैं। उनके नाम - १. मालवंत २. चित्रकूट ३. पद्माकूट ४. नलिमकूट ५. एक शैल ६. त्रिकूट ७. वैश्रमण कूट ८. अञ्जन ९. मातञ्जन १०. सौमनस। ____ इनमें से मालवन्त, चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट और एकशैल ये पाँच पर्वत सीता महानदी के उत्तर तट पर हैं और शेष पाँच पर्वत दक्षिण तट पर हैं। - वक्खार पर्वत दस - जम्बूद्वीप के अन्दर मेरु पर्वत के पश्चिम दिशा में सीता महानदी के दोनों तटों पर दस वक्खार पर्वत हैं। उनके नाम - १. विद्युत् प्रभ २. अंकावती ३. पद्मावती ४. आशीविष ५. सुखावह ६. चन्द्रपर्वत ७. सूर्य पर्वत ८. नाग पर्वत ९. देव पर्वत १०. गन्ध मादन पर्वत। इनमें से प्रथम पाँच पर्वत सीता महानदी के दक्षिण तट पर है और शेष पांच पर्वत उत्तर तट पर हैं। ..... कल्पोपपन्न इन्द्र दस - कल्पोपपन देवलोक बारह हैं। उनके दस इन्द्र ये हैं - १. सुधर्म देवलोक का इन्द्र सौधर्मेन्द्र या शकेन्द्र कहलाता है। २. ईशान देवलोक का इन्द्र ईशानेन्द्र कहलाता है। ३. सनत्कुमार ४. माहेन्द्र ५. ब्रह्मलोक ६. लान्तक ७. शुक्र ८. सहसार ९. आणत १०. प्राणत ११. आरण १२. अच्युत। इन देवलोकों के इन्द्रों के नाम अपने अपने देवलोक के समान ही हैं। नवें और दसवें देवलोक का प्राणत नामक एक ही इन्द्र होता है। ग्वारहवें और बारहवें देवलोक का भी अच्युत नामक एक ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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