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श्री स्थानांग सूत्र
भावार्थ - दस प्रकार का मिथ्यात्व कहा गया है यथा - अधर्म को धर्म समझना । वास्तविक धर्म को अधर्म समझना । संसार के मार्ग को मोक्ष का मार्ग समझना । मोक्ष के मार्ग को संसार का मार्ग समझना। अजीव को जीव समझना । जीव को अजीव समझना । असाधु को साधु समझना । साधु को असाधु समझना । जो व्यक्ति रागद्वेष रूप संसार से मुक्त नहीं हुआ है उसे मुक्त समझना । जो महापुरुष संसार से मुक्त हो चुका है उसे अमुक्त यानी संसार में लिप्त समझना ।
आठवें तीर्थङ्कर श्री चन्द्रप्रभ स्वामी दस लाख पूर्व वर्ष की सम्पूर्ण आयुष्य को भोग कर सिद्ध हुए यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए । पन्द्रहवें तीर्थङ्कर श्री धर्मनाथ-स्वामी दस लाख वर्ष का सम्पूर्ण आयुष्य भोग कर सिद्ध हुए यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए । इक्कीसवें तीर्थङ्कर श्री नमिनाथ स्वामी दस हजार वर्ष की सम्पूर्ण आयुष्य को भोग कर सिद्ध हुए यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए । पांचवां पुरुषसिंह वासुदेव दस लाख वर्ष की सम्पूर्ण आयु को भोग कर छठी तमप्रभा नरक में नैरयिकपने उत्पन्न हुआ । बाईसवें तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथस्वामी के शरीर की ऊंचाई दस धनुष थी, वे दस सौ वर्ष (अर्थात् एक हजार वर्ष) की सम्पूर्ण आयुष्य को भोग कर सिद्ध हुए यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए। ___ कृष्ण वासुदेव के शरीर की ऊंचाई दस धनुष थी और वे दस सौ वर्ष (अर्थात् एक हजार वर्ष) की सम्पूर्ण आयु को भोग कर तीसरी वालुप्रभा नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुए ।
दस प्रकार के भवनवासी देव कहे गये हैं यथा - असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, वायुकुमार, स्तनितकुमार । इन दस प्रकार के भवनवासी देवों के दस चैत्य वृक्ष कहे गये हैं यथा - अश्वस्थ, सप्तपर्ण, शाल्मली, उम्बर, शिरीष, दधिपर्ण, वञ्जुल, पलास,, वप्र और कर्णिकार । ___ दस प्रकार का सुख कहा गया है यथा - आरोग्य - शरीर का स्वस्थ रहना, उसमें किसी प्रकार का रोग या पीड़ा का न होना आरोग्य कहलाता है । शरीर का नीरोग रहना सब सुखों में श्रेष्ठ कहा गया है । शुभ दीर्घ आयु आढ्यत्व - विपुल धन सम्पत्ति का होना ! काम यानी शुभ शब्द और सुन्दर रूप की प्राप्ति होना । भोग यानी शुभ गन्ध, रस और स्पर्श की प्राप्ति होना । सन्तोष यानी अल्प इच्छा। अस्तिसुख - जिस समय जिस पदार्थ की आवश्यकता हो उस समय उसी पदार्थ की प्राप्ति होना । शुभ भोग - प्राप्त हुए कामभोगों को भोगना । निष्क्रमण - अविरति रूप जंजाल से निकल कर भागवती दीक्षा अङ्गीकार करना वास्तविक सुख है । अनाबाध सुख - आबाधा अर्थात् जन्म, जरा, मरण, भूख प्यास आदि जहां न हो उसे अनाबाध सुख कहते हैं । ऐसा सुख मोक्ष सुख है । यही सुख वास्तविक एवं सर्वोत्तम सुख है । इससे बढ़ कर कोई सुख नहीं है । ___ दस प्रकार का उपघात कहा गया है यथा - उद्गमोपघात, उत्पादनोपघात, एषणोपघात, परिकर्मोपघात, परिहरणोपघात । इनका विशेष खुलासा पांचवें ठाणे में किया गया है । ज्ञानोपघात - ज्ञान
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