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स्थान १०
२८९ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 कांपता हुआ शब्द ५. जर्जरित-करटिका आदि वादय विशेष का शब्द ६. दीर्घ-दीर्घ वर्णों से युक्त जो शब्द हो, अथवा जो शब्द बहुत दूर तक सुनाई देता हो, जैसे मेघ की गर्जना ७. ह्रस्व - ह्रस्व वर्णों से युक्त अथवा दीर्घ शब्द की अपेक्षा जो लघु हो, जैसे वीणा आदि का शब्द ८. पृथक् - अनेक प्रकार के वाद्यों का मिला हुआ शब्द ९. काकणी शब्द - सूक्ष्म कण्ठ से जो गीत गाया जाता है उसे काकणी या काकली शब्द कहते हैं १०. किंकिणी शब्द - छोटे छोटे घूघरे जो बैलों के गले में बांधे जाते हैं अथवा नाचने वाले पुरुष अपने पैरों में बांधते हैं उन घूघरों के शब्द को किङ्किणी शब्द कहते हैं।
इन्द्रियों के अतीत विषय दस कहे गये हैं। यथा - किसी ने शब्दों को एक देश से सुना । किसी ने शब्दों को सम्पूर्ण रूप से सुना। किसी ने रूपों को एक देश से देखा । किसी ने सम्पूर्ण रूप से रूपों को देखा । इसी तरह गन्ध, रस और स्पर्श के भी दो दो भेद कह देने चाहिए । इस प्रकार पांच इन्द्रियों के दस भेद हो जाते हैं। इन्द्रियों के वर्तमान विषय दस कहे गये हैं। यथा - कोई पुरुष शब्दों को एक देश से सुनता है। कोई पुरुष सम्पूर्ण रूप से शब्दों को सुनता है। इसी तरह रूप, गन्ध, रस और स्पर्श तक प्रत्येक के दो दो भेद कह देने चाहिए। इन्द्रियों के अनागत यानी भविष्यत् कालीन विषय दस कहे. गये हैं। यथा - कोई पुरुष एक देश से शब्दों को सुनेगा। कोई पुरुष सम्पूर्ण रूप से शब्दों को सुनेगा। इसी तरह रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन प्रत्येक के दो दो भेद कह देने चाहिए। इस प्रकार पांच इन्द्रियों के दस विषय होते हैं। __विवेचन - शब्द के तीन भेद होते हैं - १. जीव शब्द २. अजीव शब्द ३. मिश्र शब्द। उपर्युक्त दस शब्दों का समावेश भी इन तीन भेदों में हो जाता है। शब्द इन्द्रिय ग्राह्य हैं अतः आगे के सूत्र में इन्द्रिय विषयों का तीन कालों की अपेक्षा से वर्णन किया गया है। एक देश से सुनने का अर्थ है - जब श्रोत्रेन्द्रिय अधूरी बात को सुनती है या एक ओर की बात को टेलिफोन की तरह एक कान से सुनती है। जब किसी बात को पूरी तरह से अनेक दृष्टियों से सुना जाता है तो उसे सर्व से - सम्पूर्ण रूप से सुनना कहा जाता है। इसी तरह अन्य इन्द्रिय विषयों के लिए भी समझना चाहिये।
पुद्गलों के चलित होने के कारण दसहि ठाणेहिं अच्छिण्णे पोग्गले चलेजा तंजहा - आहारिजमाणे वा चलेजा, परिणामेजमाणे वा चलेजा, उस्ससिजमाणे वा चलेजा, णिस्ससिजमाणे वा चलेजा, वेइजमाणे वा चलेजा, णिजरिजमाणे वा चलेजा, विउविजमाणे वा चलेजा, परियारिजमाणे वा चलेजा, जक्खाइडे वा चलेजा, वायपरिग्गहे वा चलेजा।
क्रोधोत्पत्ति के कारण दसहिं ठाणेहिं कोहुप्पत्ती सिया तंजहा - मणुण्णाइं मे सहफरिसरसरूवगंधाइं
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