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स्थान ९
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हे आर्यो ! जैसे मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए नग्न भाव, मुण्डित होना, स्नान न करना, दतौन न करना, छत्रधारण न करना पगरखी नहीं पहनना, भूमि शय्या - भूमि पर सोना, फलकशय्या-पाटिये प सोना, काष्ठशय्या - काठ पर सोना, केशलोच, ब्रह्मचर्य पालन, परगृहप्रवेश - भिक्षा के लिए गृहस्थों के घर जाना यावत् आहारादि के मिलने पर अथवा आहारादि के न मिलने पर संतोष रखना, इत्यादि बातें कही हैं । इसी तरह महापद्म तीर्थङ्कर भी श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए नग्नभाव यावत् प्राप्त अप्राप्त आहारादि में सन्तोष रखना आदि की प्ररूपणा करेंगे । हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए आधाकर्म, औद्देशिक, मिश्र - अपने लिए और साधु के लिए शामिल बनाया हुआ, अध्यवपूरक अपने लिए बनते हुए भोजन में साधुओं का आगमन सुन कर उनके निमित्त से और मिला देना, पूतिकर्म - शुद्ध आहार में आधाकर्मादि का अंश मिल जाना, क्रीत-साधु के लिए मोल लिया हुआ । प्रामित्य - साधु के लिए उधार लिया हुआ । आच्छेदय - निर्बल व्यक्ति से या अपने आश्रित रहने वाले नौकर चाकर और पुत्रादि से छीन कर साधुजी को देना, अनिसृष्ट - किसी वस्तु के एक से अधिक मालिक होने पर सब की इच्छा के बिना देना, अभिहृत- साधु के लिए गृहस्थ द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाया हुआ आहारादि, कान्तारभक्त जंगल में साधु के लिए बना कर दिया जाने वाला आहारादि, दुर्भिक्षभक्त - दुर्भिक्ष के समय साधु के लिए बना कर देना, ग्लान भक्त अपने रोग की शान्ति के लिए साधु को दान देना अथवा बीमार साधु के निमित्त आहारादि बना कर देना । वर्षा के समय भिक्षा के लिए न जा सकने वाले साधुओं के निमित्त आहारादि बना कर देना । नवीन आये हुए साधु के निमित्त आहारादि बना कर देना, सचित्त मूले का सेवन करना, वज्रकन्द आदि कन्दों का सेवन करना । आम, नीम्बू आदि सचित्त फलों का सेवन करना, सचित्त तिल आदि बीजों का सेवन करना । हरित भोजन - सचित्त हरी लीलोती का सेवन करना, आदि बातों का निषेध किया है । इसी तरह महापद्म तीर्थङ्कर भी आधाकर्मी यावत् हरितभोजन आदि का निषेध करेंगे ।
हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए सुबह शाम दोनों वक्त प्रतिक्रमण करना, पांच महाव्रतों का पालन करना और अचेलक यानी परिमाणोपेत वस्त्र रखना इत्यादि धर्म कहा है । इसी • प्रकार महापद्म तीर्थङ्कर श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पांच महाव्रत यावत् अचेलक धर्म की प्ररूपणा करेंगे । हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत यह बारह व्रत रूप श्रावक धर्म कहा है । इसी प्रकार महापद्म तीर्थङ्कर भी पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत यह बारह व्रत रूप श्रावक धर्म की प्ररूपणा करेंगे । हे आर्यों ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए शय्यातर पिण्ड और राजपिण्ड का निषेध किया । इसी प्रकार महापद्म तीर्थङ्कर भी श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए शय्यातरपिण्ड और राजपिण्ड का निषेध करेंगे । हे आर्यो ! जिस प्रकार मेरे नौ गण और ग्यारह गणधर हैं उसी प्रकार महापद्म
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