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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
उसी रात्रि के मध्यभाग में धर्मजागरणा करते हुए शंख के मन में यह बात आई कि मुझे सुबह श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार करके लौटकर पौषध पारना चाहिए। यह सोचकर वह सुबह होते ही पौषधशाला से निकला। शुद्ध, बाहर जाने के योग्य मांगलिक वस्त्रों को अच्छी तरह पहिन कर घर से बाहर आया। श्रावस्ती के बीच से होता हुआ पैदल कोष्ठक चैत्य में भगवान् के पास पहुंचा। भगवान् को वन्दना की। नमस्कार किया। पर्युपासना (सेवाभक्ति) करके एक स्थान पर बैठ गया।
भगवती सूत्र शतक २ उद्देशक ५ में निम्न लिखित पाँच अभिगम बताये गए हैं। धर्मस्थान में पहुंचने पर इनका पालन करके फिर वन्दना नमस्कार करना चाहिए।
१. अपने पास अगर कोई सचित्त वस्तु हो तो उसे अलग रख दे। २. अचित्त वस्तु अर्थात् वस्त्र आदि को समेट कर चले। ३. बीच में बिना सिले हुए दुप्पट्टे का उत्तरासंग करे। ४. साधु साध्वी को देखते ही दोनों हाथ जोड़ कर ललाट पर रख ले। ५. मन को एकाग्र करे। ___ शंख श्रावक पौषध में आए थे। उनके पास सचित्तादि वस्तुएं नहीं थी। इसलिए उन्होंने सचित्त त्याग रूप अभिगम नहीं किया।
दूसरे श्रावक भी सुबह स्नानादि के बाद शरीर को अलंकृत करके घर से बाहर निकले। सब एक जगह इकट्ठे हुए। नगर के बीच से होते हुए कोष्ठक नामक चैत्य में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के . सेवा में पहुंचे। वन्दना नमस्कार करके पर्युपासना करने लगे। भगवान् ने धर्म का उपदेश दिया। वे सब श्रावक धर्मकथा सुन कर बहुत प्रसन्न हुए। वहाँ से उठ कर भगवान् को वन्दन नमस्कार किया। फिर शंख के पास आकर कहने लगे - 'हे देवानुप्रिय ! कल आपने हमें कहा था, पुष्कल आहार आदि तैयार कराओ। फिर हम लोग पाक्षिक पौषध का आराधन करेंगे। इसके बाद आप पौषधशाला में पौषध लेकर बैठ गए। इस प्रकार आपने हमारी अच्छी हीलना (हाँसी) की।' ___ इस पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने श्रावकों को कहा - 'हे आर्यो ! आप लोग शंख श्रावक की हीलना, निन्दा, खिंसना, गर्हना या अवमानना मत करो, क्योंकि शंख श्रमणोपासक प्रियधर्मा और . दृढ़धर्मा है। इसने प्रमाद और निद्रा का त्याग करके ज्ञानी की तरह सुदक्खुजागरिया (सुदृष्टि जागरिका) का आराधन किया है।
- गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् ने बताया जागरिकाएं तीन हैं। उनका स्वरूप नीचे लिखे अनुसार हैं - - १. बुद्ध जागरिका - केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारक अरिहन्त भगवान् बुद्ध कहलाते हैं। उनकी प्रमाद रहित अवस्था को बुद्धजागरिका कहते हैं।
२. अबुद्ध जागरिका-जो अनगार ईर्यादि पांच समिति, तीन गुप्ति तथा पांच महाव्रतों का पालन करते हैं, वे सर्वज्ञ न होने के कारण अबुद्ध कहलाते हैं। उनकी जागरणा को अबुद्ध जागरिका कहते हैं।
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