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________________ स्थान ९ २६१ है। ऊंटनी के दूध का दही, मक्खन और घी नहीं होता है । ३. नवनीत - मक्खन - यह भी चार प्रकार का होता है । ४. सर्पि यानी घी - यह भी चार प्रकार का होता है । ५. तेल - तिल अलसी कुसुम्भ और सरसों के भेद से यह चार प्रकार का है, बाकी तेल लेप हैं, विगय नहीं है । ६. गुड़ - यह दो तरह का होता है ढीला और पिण्ड अर्थात् बंधा हुआ । यहाँ गुड़ शब्द से खांड, चीनी, मिश्री, आदि सभी मीठी वस्तुएं ले ली जाती हैं।७. मधु - शहद । ८. मदय - शराब । ९. मांस । __इस औदारिक शरीर में नौ द्वारों से मल झरता रहता है यथा - दो कान, दो नेत्र, नाक के दो छेद, मुख, उपस्थ यानी पेशाब करने की जगह और पायु यानी गुदा द्वार - टट्टी करने की जगह । पुण्य नौ प्रकार का कहा गया है यथा - १. अन्न पुण्य यानी अन्न देने से होने वाला पुण्य । २. पान पुण्य- दूध, पानी आदि पीने की वस्तुएं देने से होने वाला पुण्य । ३. वस्त्र पुण्य - वस्त्र देने से होने वाला पुण्य । ४. लयन पुण्य - मकान आदि ठहरने का स्थान देने से होने वाला पुण्य । ५. शयन पुण्य - बिछाने के लिए पाटा विस्तर आदि देने से होने वाला पुण्य । ६. मन पुण्य - गुणियों को देख कर मन में प्रसन्न होने से होने वाला पुण्य । ७. वचन पुण्य - वाणी के द्वारा गुणी पुरुषों की प्रशंसा करने से होने वाला पुण्य । ८. काय पुण्य - शरीर से दूसरों की सेवा भक्ति करने से होने वाला पुण्य । ९. नमस्कार पुण्य - अपने से अधिक गुण वाले को नमस्कार करने से होने वाला पुण्य । पाप के नौ स्थान कहे गये हैं यथा - प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ। पापश्रुत प्रसंग यानी जिस शास्त्र के पठन पाठन और विस्तार आदि से पाप होता है उसे पापश्रुत कहते हैं। वह पापश्रुत नौ प्रकार का कहा गया है यथा - १. उत्पात - प्रकृति के विकार अर्थात् रक्तवृष्टि आदि या राष्ट्र के उत्पात आदि को बताने वाला शास्त्र । २. निमित्त - भूत भविष्यत् की बात को बताने वाला शास्त्र । ३. मन्त्र - दूसरे को मारना, वश में कर लेना आदि मंत्रों को बताने वाला शास्त्र । ४. मातङ्गविदया - जिसके उपदेश से भौपा आदि के द्वारा भूत भविष्यत् की बातें बताई जाती हैं। ५. चैकित्सिक - आयुर्वेद । ६. कला - लेख आदि जिनमें गणित प्रधान है अथवा पक्षियों के शब्द का ज्ञान आदि । पुरुष की बहत्तर और स्त्री की चौसठ कलाएं । ७. आवरण - मकान आदि बनाने का वास्तु विदया । ८. अज्ञान - लौकिक ग्रन्थ भरत नाटय शास्त्र और काव्य आदि । ९. मिथ्याप्रवचन - चार्वाक आदि दर्शन । ये सभी पापश्रुत हैं । विवेचन - पुण्य-शुभ कर्मों के बन्ध को पुण्य कहते हैं। पुण्य के नौ भेद हैं - अन्नं पानं च वस्त्रं च, आलयः शयनासनम्। शुश्रूषा वन्दनं तुष्टिः, पुण्यं नवविधं स्मृतम्॥ १. अन्नपुण्य - पात्र को अन्न देने से तीर्थंकर नाम शुभ प्रकृतियों का बंधना। २. पानपुण्य - दूध, पानी आदि पीने की वस्तुओं को देने से होने वाला शुभ बन्ध। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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