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श्री स्थानांग सूत्र
अर्थात् १. ज्यादा पानी पीने से २. विषम आसन से बैठने से ३. मूत्र रोकने से ४. मल रोकने से ५. दिन में सोने से ६. रात्रि में जागरण से-इन छह प्रकार से रोगों की उत्पत्ति होती है।
. दर्शनावरणीय के भेद णवविहे दरिसणावरणिजे कम्मे पण्णत्ते तंजहा - णिहा, णिहाणिहा, पयला, पयलापयला, थीणगिद्धी, चक्खुदंसणावरणे, अचक्खुदंसणावरणे, ओहिदसणावरणे, केवलदसणावरणे।
नक्षत्र चन्द्रयोग, बलदेवों वासुदेवों के पिता अभिई णं णक्खत्ते साइरेगे णव मुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोगं जोएइ। अभीइ आइया णव णक्खत्ता णं चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति तंजहा - अभीई सवणे धणिट्ठा जाव भरणी । इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ. णव जोयण सयाई उई अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ । जंबूहीवे णं दीवे णवजोयणिया मच्छा पविसिंसु वा पविसंति वा पविसिस्संति वा । जंबूहीवे दीवे भारहेवासे इमीसे ओसप्पिणीए णव बलदेव वासुदेव पियरो हुत्था तंजहा
पयावई य बंभे य, रोहे सोमे सिवेइया ।।
महासीहे अग्गिसीहे, दसरह णवमे य वासुदेवे ॥१॥ इत्तो आढत्तं जहा समवाए णिरवसेसं जाव एगासे गब्भवसही सिज्झिस्सइ आगमेस्सेणं । जंबूहीवे दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए णव बलदेव वासुदेव पियरो भविस्संति, णव बलदेव वासुदेव मायरो भविस्संति एवं जहा समवाए णिरवसेसं जाव महाभीमसेंणे सुग्गीवे य, अपच्छिमे।
एए खलु पडिसत्तू कित्ती पुरिसाण वासुदेवाणं । . सव्वे वि चक्कजोही हम्मिहंति सचक्केहिं ॥२॥ १०३॥ कठिन शब्दार्थ - दरिसणावरणिग्जे - दर्शनावरणीय, णिहाणिहा.- निद्रा निद्रा, पयलापयला - प्रचला प्रचला, थीणगिद्धी - स्त्यानगृद्धि, एगासे - एक बार, कित्तीपुरिसाण - कीर्ति पुरुष-श्लाघ्य पुरुष, चक्कजोही - चक्र योधी। .
भावार्थ - नौ प्रकार का दर्शनावरणीय कर्म कहा गया है यथा - निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय, केवलदर्शनावरणीय। अभिजित नक्षत्र नौ मुहूर्त से कुछ अधिक चन्द्रमा के साथ योग करता है । अभिजित् आदि यानी
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