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स्थान ९
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७. पहिले भोगे हुए भोगों का स्मरण न करे।
८. स्त्रियों के शब्द, रूप या ख्याति (वर्णन) आदि पर ध्यान न दे, क्योंकि इन से चित्त में चञ्चलता पैदा होती है।
९. पुण्योदय के कारण प्राप्त हुए अनुकूल वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि के सुखों में आसक्त न हो।
इन बातों का पालन करने से ब्रह्मचर्य की रक्षा की जा सकती है। इनके विपरीत ब्रह्मचर्य की नौ अगुप्तियाँ हैं।
चौथे पांचवें तीर्थंकर के बीच का काल अभिणंदणाओ णं अरहओ सुमई अरहा णवहिं सागरोवमकोडीसयसहस्सेहिं वीइक्कंतेहिं समुप्पण्णे।
सद्भाव पदार्थ (तत्त्व), संसारी जीव,गति आगति,सर्व जीव णव सब्भावपयत्था पण्णत्ता तंजहा - जीवा, अजीवा, पुण्णं, पावो, आसवो, संवरो, णिजरा, बंधो, मुक्खो । णव विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता तंजहा - पुढविकाइया, जावं वणस्सइ काइया, बेइंदिया जाव पंचिंदिया। पुढविकाइया णवगइया णव आगइया पण्णत्ता तंजहा - पुढवीकाइए पुढवीकाइएसु उववजमाणे पुढवीकाइएहिंतो वा जाव पंचिंदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा, से चेव णं से पुढवीकाइए पुढवी काइयत्तं विप्पजहमाणे पुढवीकाइयत्ताए जाव पंचिंदियत्ताए वा गच्छेज्जा । एवं आउकाइया वि जाव पंचिंदिति । णवविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, णेरइया, पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया, मणुस्सा, देवा, सिद्धा । अहवा णवविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - पढम समय णेरइया अपढमसमयणेरइया जाव अपढमसमय देवा, सिद्धा । णवविहा सव्व जीवोगाहणा पण्णत्ता तंजहा - पुढवीकाइयओगाहणा आउकाइयओगाहणा जाव वणस्सइकाइयओगाहणा, बेइंदियओगाहणा, तेइंदिय ओगाहणा, चउरिंदिय ओगाहणा, पंचिंदियओगाहणा ।जीवाणं णवहिं ठाणेहिं संसारं वत्तिंसु वा, वत्तंति वा, वत्तिस्संति वा तंजहा - पुढवीकाइयत्ताए जाव पंचिंदियत्ताए ।
रोगोत्पत्ति के कारण णवहिं ठाणेहि रोगुप्पत्ती सिया तंजहा - अच्चासणाए, अहियासणाए, अइणिदाए, अइजागरिएण, उच्चारणिरोहेणं, पासवणणिरोहेणं, अद्धाणगमणेणं, भोयणपडिकूलयाए, इंदियत्यविकोवणयाए॥१०२॥
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