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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 विवाद करे। शास्त्रार्थ में प्रवृत्त होने से पहिले भली भांति समझ ले कि उस में प्रवृत्त होना चाहिए या नहीं? सफलता मिलेगी या नहीं? (ख) सभा को जान कर प्रवृत्त हो अर्थात् यह जान लेवे कि सभा किस ढंग की है, कैसे विचारों की है? सभ्य लोग मूर्ख हैं या विद्वान्? वे किस बात को पसन्द करते हैं? वे किस मत को मानने वाले हैं। इत्यादि। (ग) क्षेत्र को समझना चाहिए अर्थात् जहाँ शास्त्रार्थ करना है उस क्षेत्र में जाना और रहना उचित है या नहीं? अगर वहां अधिक दिन ठहरना पड़ा तो किसी तरह के उपसर्ग की सम्भावना तो नहीं है? आदि। (घ) शास्त्रार्थ के विषय को अच्छी तरह समझ कर प्रवृत्त हो। यह भी जान ले कि प्रतिवादी किस मत को मानने वाला है। उसका मत क्या है। उसके शास्त्र कौन से हैं? आदि।
___८. संग्रहपरिज्ञा सम्पदा - वर्षावास (चौमासा) आदि के लिए मकान, पाटला, वस्त्रादि का ध्यान रख कर आचार के अनुसार संग्रह करना संग्रहपरिज्ञा सम्पदा है। इसके चार भेद हैं - (क) मुनियों के लिए वर्षाऋतु में ठहरने योग्य स्थान देखना। (ख) पीठ, फलक, शय्या, संथारे आदि का ध्यान रखना। (ग) समय के अनुसार सभी आचारों का पालन करना तथा दूसरे साधुओं से कराना। (घ) अपने से बड़ों का विनय करना। ___पांच समिति और तीन गुप्ति को प्रवचन माता कहते हैं। पांच समितियों का वर्णन पांचवें स्थान में और तीन गुप्तियों का वर्णन तीसरे स्थान में किया जा चुका है।
आलोचना सुनने और करने वाले के गुण अहिं ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहइ आलोयणा पडिच्छित्तए तंजहा - आयारवं, आहारवं, ववहारवं, उव्वीलए, पकुव्वए, अपरिस्सावी, णिज्जावए, अवायदंसी । अट्ठहिं ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहइ अत्तदोसमालोइत्तए तंजहा - जाइसंपण्णे, कुलसंपण्णे, विणयसंपण्णे, णाणसंपण्णे, दंसणसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे, खते, दंते ।
प्रायश्चित्त अट्ठविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते तंजहा - आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विउस्सग्गारिहे, तवारिहे, छेयारिहे, मूलारिहे ।
मदस्थान अट्ठ मयट्ठाणा पण्णत्ता तंजहा - जाइमए, कुलमए, बलमए, सवमए, तवमए, सुयमए, लाभमए, इस्सरियमए॥८॥ .
कठिन शब्दार्थ - पडिच्छित्तए - देने के लिए, अरिहइ - योग्य होता है, आयारवं - आचारवान्, आहारवं - आधारवान्, ववहारवं - व्यवहारवान्, उव्वीलए - अपव्रीडक, पकुव्यए -
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