________________
स्थान ५ उद्देशक १ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 लेना जीव अदत्तादान है। जैसे माता पिता या संरक्षक द्वारा पुत्रादि शिष्य भिक्षा रूप में दिये जाने पर भी उन्हें उनकी इच्छा बिना दीक्षा लेने के परिणाम न होने पर भी उनकी अनुमति के बिना उन्हें दीक्षा देना जीव अदत्तादान है। इसी प्रकार सचित्त पृथ्वी आदि स्वामी द्वारा दिये जाने पर भी पृथ्वी-शरीर के स्वामी जीव की आज्ञा न होने से उसे उपयोग में लेना जीव अदत्तादान है। इस प्रकार सचित्त वस्तु के भोगने से प्रथम महाव्रत के साथ साथ तृतीय महाव्रत का भी भङ्ग होता है।
३. तीर्थकर से प्रतिषेध किये हुए आधाकर्मादि आहार ग्रहण करना तीर्थकर अदत्तादान है।
४. स्वामी द्वारा निर्दोष आहार दिये जाने पर भी गुरु की आज्ञा प्राप्त किये बिना उसे भोगना गुरु अदत्तादान है।
किसी भी क्षेत्र एवं वस्तु विषयक उक्त चारों प्रकार के अदत्तादान से सदा के लिये तीन करण तीन योग से निवृत्त होना अदत्तादान विरमण रूप तीसरा महाव्रत है। . ४. मैथुन विरमण महाव्रत - देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी दिव्य एवं औदारिक काम-सेवन का तीन करण तीन योग से त्याग करना मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महाव्रत है।
५. परिग्रह विरमण महाव्रत - अल्प, बहु, अणु, स्थूल, सचित्त, अचित्त आदि समस्त द्रव्य . विषयक परिग्रह का तीन करण तीन योग से त्याग करना परिग्रह विरमण रूप पञ्चम महाव्रत है। मूर्छा, ममत्व होना भाव परिग्रह है और वह त्याज्य है। मूर्छाभाव का कारण होने से बाह्य सकल वस्तुएं द्रव्य परिग्रह हैं और वे भी त्याज्य हैं। भाव परिग्रह मुख्य है और द्रव्य परिग्रह गौण। इसलिए यह कहा गया है कि यदि धर्मोपकरण एवं शरीर पर मुनि के मूर्छा, ममता भाव जनित राग भाव न हो तो वह उन्हें धारण करता हुआ भी अपरिग्रही ही है।
अणुव्रत पाँच - महाव्रत की अपेक्षा छोटा व्रत अर्थात् एक देश त्याग का नियम अणुव्रत है। इसे शीलव्रत भी कहते हैं। अथवा - सर्व विरत साधु की अपेक्षा अणु अर्थात् थोड़े गुण वाले (श्रावक) के व्रत अणुव्रत कहलाते हैं। श्रावक के स्कूल प्राणातिपात आदि त्याग रूप व्रत अणुव्रत हैं। अणुव्रत पाँच हैं
१. स्थूल प्राणातिपात का त्याग। २. स्थूल मृषावाद का त्याग। ३. स्थूल अदत्तादान का त्याग। ४. स्वदार संतोष। ५. इच्छा-परिमाण।
१. स्थूल प्राणातिपात का त्याग - स्वशरीर में पीड़ाकारी, अपराधी तथा सापेक्ष निरपराधी के सिवा शेष द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीवों की संकल्प पूर्वक हिंसा का दो करण तीन योग से त्याग करना स्थूल प्राणातिपात त्याग रूप प्रथम अणुव्रत है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org