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स्थान ७
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त्र्यत्र, पिहुले - पृथुल, भयाणां भयस्थान, आयाणभए- आदान भय, अकम्हाभए - अकस्माद्भय, असिलोयभए - अश्लोक भय ।
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भावार्थ - बादर वायुकाय सात प्रकार की कही गई हैं यथा- पूर्व की वायु, पश्चिम की वायु, दक्षिण की वायु उत्तर की वायु ऊर्ध्व दिशा की वायु, अधोदिशा की वायु और विदिशा की वायु । सात संस्थान कहे गये हैं यथा - दीर्घ यानी लम्बा, ह्रस्व यानी छोटा, वृत्त - कुम्हार के चक्र जैसा गोल, त्र्यस - सिंघाड़े जैसा त्रिकोण, चतुरस्र बाजोट जैसा चतुष्कोण, पृथुल फैला हुआ और परिमण्डल - चूड़ी जैसा गोल । सात भय स्थान कहे गये हैं यथा १. इहलोक भय - अपनी ही जाति के प्राणी से डरना इहलोक भय है, जैसे मनुष्य का मनुष्य से, देव का देव से, तिर्यञ्च का तिर्यञ्च से और नैरयिक का नैरयिक से डरना इहलोक भय है । २. परलोक भय - दूसरी जाति वाले से डरना . परलोकभय है, जैसे मनुष्य का तिर्यञ्च या देव से डरना अथवा तिर्यञ्च का देव या मनुष्य से डरना परलोक भय है । ३. आदान भय धन की रक्षा के लिए चोर आदि से डरना, ४ . अकस्माद्भय किसी भी बाहरी कारण के बिना यों ही अचानक डरने लगना अकस्माद् भय है । ५. वेदना भय पीड़ा से डरना, ६. मरण भय - मरने से डरना और ७. अश्लोक भय- अपकीर्ति से डरना ।
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सात बातों से छद्मस्थ जाना जा सकता है यथा- जानते या अजानते कभी छद्मस्थ से हिंसा हो जाती है क्योंकि चारित्र मोहनीय कर्म के कारण वह चारित्र का पूर्ण पालन नहीं कर सकता है । छद्मस्थ से कभी न कभी असत्य वचन बोला जा सकता है । छद्मस्थ से अदत्तादान का सेवन भी हो सकता है । छद्मस्थ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का रागपूर्वक सेवन कर सकता है । छद्मस्थ • अपनी पूजा सत्कार का अनुमोदन कर सकता है अर्थात् अपनी पूजा सत्कार होने पर वह प्रसन्न होता है। छद्मस्थ आधाकर्म आदि को सावदय जानते हुए और कहते हुए भी उनका सेवन कर सकता है। साधारणतया छद्मस्थ जैसा कहता है वैसा करता नहीं है । इन सात बातों से छद्मस्थ पहिचाना जा सकता है । सात बातों से केवलज्ञानी सर्वज्ञ पहिचाना जा सकता है यथा केवली हिंसा आदि नहीं करते हैं यावत् जैसा कहते हैं वैसा ही करते हैं । ऊपर कहे हुए छद्मस्थ पहिचानने के बोलों से विपरीत सात बोलों से केवली पहिचाने जा सकते हैं । केवली के चारित्र मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय हो जाता है इसलिए उनका संयम निरतिचार होता है । मूलगुण और उत्तरगुण सम्बन्धी दोषों का वे सेवन नहीं करते हैं । इसलिए वे उक्त सात बातों का सेवन नहीं करते ।
विवेचन - आकार विशेष को संस्थान कहते हैं। इसके सात भेद हैं। मोहनीय कर्म की प्रकृति के उदय से पैदा हुए आत्मा के परिणाम विशेष को भय कहते हैं। इससे प्राणी डरने लगता है। भय के कारणों को भय स्थान कहते हैं। वे सात हैं। भय की अवस्था वास्तविक घटना होने से पहिले उसकी सम्भावना से पैदा होती है। सात भयस्थानों का वर्णन भावार्थ में कर दिया गया है।
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