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श्री स्थानांग सूत्र
के लिए, ईर्यार्थ यानी ईर्यासमिति की शुद्धि के लिए, संयमार्थ यानी संयम की रक्षा के लिए, प्राणप्रत्ययार्थ यानी अपने प्राणों की रक्षा के लिए तथा छठा कारण है धर्म चिन्तार्थ यानी शास्त्र के पठन पाठन आदि धर्म का चिन्तन करने के लिए, इन छह कारणों से साधु साध्वी आहार करते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । छह कारणों से आहार का त्याग करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है, वे छह कारण ये हैं - आतङ्क - रोग होने पर, उपसर्ग - राजा, स्वजन, देव, तिर्यञ्च, आदि द्वारा उपसर्ग उपस्थित करने पर, ब्रह्मचर्य की गुप्ति यानी ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए, प्राणिदयार्थ यानी प्राणी, भूत, जीव, सत्त्वों की रक्षा के लिए, तप हेतु यानी तप करने के लिए और शरीर व्यवच्छेदार्थ यानी अन्तिम समय संथारा करने के लिए इन छह कारणों के उपस्थित होने पर साधु साध्वी आहार का त्याग करते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने छह दिशाओं का नामोल्लेख करते हुए उनमें होने वाले गति आदि चौदह क्रियाओं का वर्णन किया है।
छह कारणों से आहार करता हुआ और छह कारणों से आहार त्याग करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है। उपरोक्त वर्णित छह-छह कारण उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २४ में भी दिये गये हैं।
उन्माद, प्रमाद छहिं ठाणेहिं आया उम्मायं पाउणेज्जा तंजहा - अरिहंताणं अवण्णं वयमाणे, - अरिहंत पण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वयमाणे, आयरियउवज्झायाणं अवण्णं वयमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स अवण्णं वयमाणे, जक्खावेसेणचेव, मोहणिज्जस्स चेव कम्मस्स उदएणं । छविहे पमाए पण्णत्ते तंजहा - मज्ज पमाए, णिह पमाए, विसय पमाए, कसाय पमाए, जूय पमाए, पडिलेहणा पमाए॥४८॥ ___ कठिन शब्दार्थ - उम्मायं - उन्माद को, पाउणेजा - प्राप्त करता है, अवण्णं - अवर्णवाद, जक्खावेसेण - यक्षावेश से, पमाए - प्रमाद, मज पमाए - मद्य प्रमाद, णिह पमाए - निद्रा प्रमाद, जूयपमाए - दयुत प्रमाद, पडिलेहणा पमाए - प्रत्युपेक्षणा प्रमाद ।
भावार्थ - छह कारणों से आत्मा उन्माद को प्राप्त करता है यथा - अरिहंत भगवान् का अवर्णवाद बोलने से, अरिहंत भगवान् के फरमायें हुए धर्म का अवर्णवाद बोलने से, आचार्य उपाध्याय महाराज का अवर्णवाद बोलने से, चतुर्विध संघ का अवर्णवाद करने से, अपने शरीर में किसी यक्ष का प्रवेश हो जाने से और मोहनीय कर्म के उदय से जीव उन्माद यानी मिथ्यात्व को प्राप्त होता है । छह प्रकार का प्रमाद कहा गया है यथा - मदय प्रमाद - शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन करना, निद्रा ।
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