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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
विवेचन - श्री चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्र में कहा है -
"सनिच्छरसंवच्छरे अट्ठाविसविहे पण्णत्ते - अभीई सवणे जाव उत्तरासाढा, जं वा सनिच्छरे महग्गहे तीसाए संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेइ।"
- शनैश्चर संवत्सर २८ प्रकार का कहा है - अभिजित् श्रवण यावत् उत्तराषाढा अथवा शनैश्चर महाग्रह तीस वर्षों में समस्त नक्षत्र मंडल को पूर्ण करता है अर्थात् एक एक राशि को २॥२॥ वर्ष भोगता है।
निर्याण मार्ग, छेदन, आनन्तर्य, अनन्त पंचविहे जीवस्स णिजाणमग्गे पण्णत्ते तंजहा - पाएहि, ऊरूहि, उरेणं, सिरेणं, सव्वंगेहिं । पाएहिं णिज्जाणमाणे णिरयगामी भवइ, ऊरूहि णिजाणमागे तिरियगामी भवइ, उरेणं णिजाणमागे मणुयगामी भवइ, सिरेणं णिजाणमाणे देवगामी भवइ, सव्वंगेहिं णिजाणमाणे सिद्धि गइ पजवसाणे पण्णत्ते । पंचविहे छेयणे पण्णत्ते तंजहा - उप्पाछेयणे, वियच्छेयणे, बंधच्छेयणे, पएसच्छेयणे, दोधारच्छेयणे । पंचविहे आणंतरिए पण्णत्ते तंजहा - उप्पायणंतरिए, वियणंतरिए, पएसाणंतरिए, समयाणंतरिए सामण्णाणंतरिए । पंचविहे अणंते पण्णत्ते तंजहा - णामाणंतए उवणाणंतए, दव्वाणंतए, गणणाणंतए पएसाणंतए । अहवा पंचविहे अणंते पण्णत्ते तंजहा - . एगओणंतए, दुहओणंतए, देसवित्थाराणंतए, सव्ववित्थाराणंतए, सासयाणंतए।३७।
कठिन शब्दार्थ - णिजाणमग्गे - निर्याणमार्ग, पाएहिं - दोनों पैरों से, उरुहि - दोनों गोडों से, उरेणं - छाती से, सव्वंगहिं - सब अङ्गों से, उप्पाछेयणे - उत्पात छेदन, विवच्छेयणे - व्यय छेदन, दोधारच्छेयणे - द्विधाकार छेदन, आणंतरिए - आनन्तर्य-अन्तर रहित, उप्पायणंतरिए - उत्पातानन्तर्य- उत्पात का अविरह, वियणंतरिए - व्ययानन्तर्य, पएसाणंतरिए - प्रदेशानन्तर्य, समयाणंतरिए - समयानन्तर्य, सामण्णाणंतरिए - सामान्यानन्तर्य, णामाणंतए - नाम अनन्तक, ठवणाणंतए - स्थापना अनन्तक, दव्वाणंतए - द्रव्य अनन्तक, गणणाणतए - गणना अनन्तक, पएसाणंतए - प्रदेश अनन्तक, देसवित्थाराणंतए - देश विस्तार अनन्तक, सव्ववित्थाराणंतए - सर्व विस्तार अनन्तक, सासयाणंतए - शाश्वत अनन्तक । ।
भावार्थ - जीव के पांच निर्याण मार्ग-मरते समय में जीव के निकलने के मार्ग कहे गये हैं ।। यथा- दोनों पैर, दोनों गोडे, छाती, सिर और सब अङ्ग । दोनों पैरों से निकलने वाला जीव नरक गामी । होता है । दोनों गोड़ों से निकलने वाला जीव तिर्यञ्चगति में जाने वाला होता है । छाती से निकलने वाला जीव मनुष्यगति में जाता है । सिर से निकलने वाला जीव देवगति में पैदा होता है और सब अङ्गों
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