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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 निकल कर उत्पन्न हो सकता है। एकेन्द्रियपने को छोड़ने वाला एकेन्द्रिय जीव एकेन्द्रियों से लेकर पञ्चेन्द्रियों में उत्पन हो सकता है। इसी प्रकार बेइन्द्रिय जीवों में भी पांच गति और पांच आगति होती है। इसी प्रकार तेइन्द्रिय चौइन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीवों में भी पांच गति और पांच आगति कही गई है। ___सब जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं । यथा - क्रोध कषायी, मानकषायी, माया कषायी, लोभकषायी और अकषायी यानी उपशान्त कषायी क्षीण कषायी। अथवा दूसरी तरह से सब जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं । यथा - नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव और सिद्ध।
अहो भगवन् ! गोलचने, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, वाल, कुलथ, चौला, तूअर और काले चने यावत् शालि कोठे में बन्द किये हुए इन धानों की योनि कितने काल तक ठहरती है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पांच वर्ष तक इनकी योनि रहती है अर्थात् ये सचित्त रहते हैं। इसके बाद योनि म्लान हो जाती है यावत् विच्छेद हो जाती है अर्थात् ये धान्य अचित्त हो जाते हैं। - पांच संवत्सर कहें गये हैं । यथा - नक्षत्र संवत्सर-चन्द्रमा का अट्ठाईस नक्षत्रों में रहने का काल नक्षत्र मास कहलाता है । बारह नक्षत्र मासों का एक नक्षत्र संवत्सर कहलाता है । युग संवत्सरं-चन्द्र आदि पांच संवत्सर का एक युग होता है । युग के एक देश रूप संवत्सर को युग संवत्सर कहते हैं। प्रमाण संवत्सर-चन्द्र आदि संवत्सर ही जब दिनों के परिमाण की प्रधानता से वर्णन किये जाते हैं तो वे ही प्रमाण संवत्सर कहलाते हैं। लक्षण संवत्सर - ये ही उपरोक्त नक्षत्र, चन्द्र, ऋतु, आदित्य और अभिवर्द्धित संवत्सर लक्षण प्रधान होने पर लक्षण संवत्सर कहलाते हैं । शनिश्चर संवत्सर - जितने काल में शनिधर एक नक्षत्र को भोगता है। वह शनिशर संवत्सर है। नक्षत्र २८ हैं। इसलिए शनिश्चर संवत्सर भी नक्षत्रों के नाम से २८ प्रकार का है । अथवा २८ नक्षत्रों के तीस वर्ष परिमाण भोग काल को शनिश्चर संवत्सर कहते हैं । पांच संवत्सर का एक युग होता है । युग के एक देश रूप संवत्सर को युग संवत्सर कहते हैं । वह युगसंवत्सर पांच प्रकार का कहा गया है । यथा - चन्द्र युग संवत्सर, चन्द्र युग संवत्सर, अभिवर्द्धित युग संवत्सर, चन्द्र युग संवत्सर और अभिवर्द्धित युग संवत्सर । प्रमाण संवत्सर - चन्द्र आदि संवत्सर ही जब दिनों के परिमाण की प्रधानता से वर्णन किये जाते हैं तो वे ही प्रमाण संवत्सर कहलाते हैं । वह प्रमाण संवत्सर पांच प्रकार का कहा गया है । यथा - नक्षत्र प्रमाण संवत्सर - नक्षत्र मास. २७ २१ दिन का होता है । ऐसे बारह मास अर्थात् ३२०५९ दिनों का एक नक्षत्र प्रमाण संवत्सर होता है । चन्द्रप्रमाण संवत्सर - कृष्ण प्रतिपदा से आरम्भ करके पूर्णमासी को समाप्त होने वाला २९३१ दिन का मास चन्द्रमास कहलाता है । बारह चन्द्रमास अर्थात् २५४१२ दिनों का एक चन्द्रप्रमाण संवत्सर होता है । ऋतु प्रमाण संवत्सर - ६० दिन की एक ऋतु होती है । ऋतु के आधे हिस्से को ऋतुमास कहते हैं । ऋतु मास को ही सावन मास और कर्म मास कहते हैं । ऋतु मास ३०.
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