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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
नैसृष्टिकी - किसी वस्तु को फैंकने से होने वाली क्रिया नैसृष्टिकी कहलाती है। इसके दो भेद हैं - १. जीव नैसृष्टिकी - खटमल यूका आदि को पटक देने, फैंकने या फव्वारे से जल छोड़ने आदि से होने वाली क्रिया और २. अजीव नैसृष्टिकी - बाण फैंकने, लकड़ी शस्त्र आदि . फैंकने से होने वाली क्रिया। ___ आज्ञापनिकी (आनायनी) - किसी की आज्ञा से जीव अथवा अजीव को लाने से अथवां दूसरे के द्वारा मंगवाने से जो क्रिया लगती है उसे आज्ञापनिकी या आनायनी क्रिया कहते हैं। . ___ वैदारिणी - विदारण करने से लगने वाली क्रिया - जीव और अजीव पदार्थों को चीरने फाडने से अथवा खोटी वस्तु को असली-अच्छी बतलाने से जो क्रिया लगती है उसे वैदारिणी कहते हैं। अथवा विचारणिका - जीव और अजीव के व्यवहार-लेन देन में दो व्यक्तियों को समझा कर सौदा पटाने रूप (दलाल की तरह) या किसी को ठगने के लिए किसी वस्तु की प्रशंसा करने से लगने वाली क्रिया विचारणिका कहलाती है।
अनाभोग प्रत्यया - अनजानपने से उपयोग शून्यता से होने वाली क्रिया। इसके दो भेद हैं - १. अनायुक्त आदानता - बिना उपयोग से वस्त्र पात्र आदि को ग्रहण करने और रखने रूप २. अनायुक्त अप्रमार्जनता - असावधानी से प्रतिलेखना प्रमार्जना करने से लगने वाली क्रिया।
अनवकांक्षा-प्रत्यया - हिताहित की उपेक्षा से लगने वाली क्रिया अनवकांक्षा प्रत्यया कहलाती है। इसके दो भेद हैं - १. आत्मशरीर अनवकांक्षा प्रत्यया - अपने हित की अपेक्षा नहीं रख कर अपने शरीर आदि को हानि पहुंचाने रूप और २. पर शरीर अनवकांक्षाप्रत्यया - परहित की अपेक्षा नहीं रखकर दूसरों को हानि पहुंचाने रूप। अथवा इस लोक और परलोक की परवाह नहीं कर के . दोनों लोक बिगाड़ने रूप क्रिया।
प्रेम प्रत्यया - राग से लगने वाली क्रिया। इसके दो भेद हैं - १. माया प्रत्यया और २. लोभ प्रत्यया।
द्वेष प्रत्यया - द्वेष से लगने वाली क्रिया। इसके दो भेद हैं - १. क्रोध से लगने वाली क्रिया क्रोध प्रत्यया और २. मान से लगने वाली क्रिया मान प्रत्यया कहलाती है।
दुविहा गरिहा पण्णत्ता तंजहा - मणसा वेगे गरहइ, वयसा वेगे गरहइ। अहवा गरिहा दुविहा पण्णत्ता तंजहा - दीहं वेगे अद्धं गरहइ, रहस्सं वेगे गरहइ। दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते तंजहा - मणसा वेगे पच्चक्खाइ, वयसा वेगे पच्चक्खाइ। अहवा पच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - दीहं वेगे अद्धं पच्चक्खाइ, रहस्सं वेगे अद्धं पच्चक्खाइ। दोहिं ठाणेहिं अणगारे संपण्णे अणाइयं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं वीइवएज्जा, तंजहा - विज्जाए चेव चरणेण चेव॥१६॥
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