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स्थान ४ उद्देशक ४ 000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - असमारभमाणस्स- आरंभ न करने वाले का, जिब्भामयाओ - जिह्वामय-जिह्वा संबंधी, सोक्खाओ- सुख से, अववरोवेत्ता - वञ्चित नहीं करने वाला, संजोगित्ता- संयुक्त करने वाला। . भावार्थ - बेइन्द्रिय जीवों का आरम्भ यानी हिंसा न करने वाले पुरुष को चार प्रकार का संयम होता है यथा - वह पुरुष बेइन्द्रिय जीव को जिह्वा सम्बन्धी सुख से वञ्चित नहीं करता है और जिह्वा सम्बन्धी दुःख से युक्त नहीं करता है । स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख से वञ्चित नहीं करता है । स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख से संयुक्त नहीं करता है । बेइन्द्रिय जीवों का आरम्भ यानी हिंसा करने वाले पुरुष को चार प्रकार का असंयम होता है यथा - वह पुरुष बेइन्द्रिय जीव को जिह्वेन्द्रिय सम्बन्धी सुख से वञ्चित करता है । जिह्वेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख से संयुक्त करता है । स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख से वञ्चित करता है । स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख से संयुक्त करता है ।
विवेचन - जिन जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय दो इन्द्रियाँ होती हैं उन्हें बेइन्द्रिय कहते . हैं। बेइन्द्रिय जीवों की रक्षा करना संयम है और उनकी हिंसा करना असंयम है। प्रस्तुत सूत्र में बेइन्द्रिय जीवों से सम्बन्धित संयम और असंयम का निरूपण किया गया है।
. सम्यग्दृष्टि पंचेन्द्रिय जीवों की क्रियाएँ सम्मदिट्ठियाणं णेरइयाणं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया । सम्मदिट्ठियाणं असुरकुमाराणं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - एवं चेव एवं विगलिंदियवग्जं जाव वेमाणियाणं ।
गुणों के नाश और विकास के कारण, शरीरोत्पत्ति के कारण ... चउहिं ठाणेहिं संते गुणे णासेज्जा तंजहा - कोहेणं, पडिणिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिणिवेसेणं । चउहिं ठाणेहिं संते गुणे दीवेज्जा - अब्भासवत्तियं, परच्छंदाणुवत्तियं, कज्जहेडं, कयपडिकइए इवा ।णेरइयाणं चउहि ठाणेहिं सरीरुप्पत्ती सिया तंजहा - कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं । एवं जाव वेमाणियाणं ।णेरइयाणं चउहि ठाणेहिं णिव्वत्तिए सरीर पण्णत्ते तंजहा - कोहणिव्यत्तिए, जाव लोभणिव्वत्तिए, एवं जाव वेमाणियाणं॥२०४॥
.. कठिन शब्दार्थ - सम्मदिट्ठियाणं - सम्यग् दृष्टि जीवों के, आरंभिया - आरम्भिकी, परिग्गहियापारिग्रहिकी, मायावत्तिया - माया प्रत्ययिकी, अपच्चक्खाण किरिया - अप्रत्याख्यानिकी, पडिणिवेसेणंप्रतिनिवेश-असहनशीलता से, अकयण्णुयाए - अकृतज्ञता से, मिच्छत्ताभिणिवेसेणं - मिथ्यात्वाभिनिवेश से, संते - विद्यमान, अब्भासवत्तियं - गुणों का अभ्यास करना, परच्छंदाणुवत्तियं - परछंदानुवर्तिक-दूसरे के अभिप्राय के अनुसार प्रवृत्ति करने से, कजहेउं - कार्य हेतु, कयपडकइए -
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