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श्री स्थानांग सूत्र
अर्थ- जो जिनवाणी पर श्रद्धा करता है और श्रद्धापूर्वक जिनवाणी सुनता है, जो दान देता है जो समकित है, पापों का त्याग करता है और देश विरति रूप संयम का पालन करता है उसको 'श्रावक' कहते हैं।
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श्रावक शब्द में तीन अक्षर हैं। टीकाकारने श्रावक शब्द के एक एक अक्षर का अर्थ किया है। यथाश्रान्ति पचन्ति तत्त्वार्थश्रद्धानं निष्ठां नयन्तीति श्राः,
तथा वपन्ति - गुणवत्सप्तक्षेत्रेषु धनबीजानि निक्षिपन्तीति वाः,
तथा - किरन्ति-क्लिष्टकम्मरजो विक्षिपन्तीति कांस्ततः कर्म्मधारये श्रावका इति भवति अर्थ - "श्रा" अर्थात् सम्यग् दर्शन को धारण करने वाले एवं तत्वों पर श्रद्धा करने वाले ।
"व" अर्थात् गुणवान्, धर्म क्षेत्रों में धनरूपी बीज को बोने वाले, दान देने वाले ।
"क" अर्थात् क्लेशयुक्त, कर्म रज का निराकरण करने वाले जीव 'श्रावक' कहलाते हैं। " श्राविका " का भी यही स्वरूप है।
श्रमण (समण, समन) की चार व्याख्याएं -
१. जिस प्रकार मुझे दुःख अप्रिय है । उसी प्रकार सभी जीवों को दुःख अप्रिय लगता हैं। यह समझ कर तीन करण, तीन योग से जो किसी जीव की हिंसा नहीं करता एवं जो सभी जीवों कों आत्मवत् समझता है। वह समण कहलाता है।
२. जिसे संसार के सभी प्राणियों में न किसी पर राग है और न किसी पर द्वेष । इस प्रकार समान मन (मध्यस्थ भाव) वाला होने से साधु स-मन कहलाता है।
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३. जो शुभ द्रव्य मन वाला है और भाव से भी जिसका मन कभी पापमय नहीं होता। जो स्वजन, परजन एवं मान अपमान में एक सी वृत्ति वाला है। वह श्रमण कहलाता है।
४. जो सर्प, पर्वत, अग्नि, सागर, आकाश, वृक्ष, पंक्ति, भ्रमर, मृग, पृथ्वी, कमल, सूर्य एवं पवन के समान होता है वह श्रमण कहलाता है।
दृष्टान्तों के साथ दान्तिक इस तरह घटाया जाता है।
सर्प - जैसे चूहे आदि के बनाये हुए बिल में रहता है उसी प्रकार साधु भी गृहस्थ के बनाये हुए घर में वास करता है। वह स्वयं घर आदि नहीं बनाता, नहीं बनवाता और बनाने वाले का अनुमोदन भी नहीं करता है।
पर्वत - जैसे आंधी और बवंडर से कभी विचलित नहीं होता। उसी प्रकार साधु भी परीषह और उपसर्ग द्वारा विचलित नहीं होता हुआ संयम में स्थिर रहता है।
अग्नि - जैसे अग्नि तेजोमय है तथा कितना ही भक्ष्य पाने पर भी वह तृप्त नहीं होती। उसी प्रकार मुनि भी तप से तेजस्वी होता है एवं शास्त्र ज्ञान से कभी सन्तुष्ट नहीं होता। हमेशा विशेष शास्त्र ज्ञान सीखने की इच्छा रखता है।
सागर - जैसे गंभीर होता है। रत्नों के निधान से भरा होता है । एवं मर्यादा का त्याग करने
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