SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 455
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३८ की रक्षा के लिये, घट्टणया घट्टनता, पवडणया श्लेषणता । श्री स्थानांग सूत्र : - - Jain Education International प्रपतनता, थंभणया - स्तम्भनता, लेसणया भावार्थ - चार प्रकार के उपसर्ग कहे गये हैं यथा देवता सम्बन्धी, मनुष्य सम्बन्धी, तिर्यञ्च सम्बन्धी और अपने आप द्वारा उत्पन्न किये हुए उपसर्ग । देवता सम्बन्धी उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं यथा - हास्य से, द्वेष से ईर्ष्या से और विविध प्रकार से देव उपसर्ग करते हैं। मनुष्य सम्बन्धी उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं यथा - हास्य से, प्रद्वेष से ईर्ष्या से और कुशील सेवन से मनुष्य सम्बन्धी उपसर्ग होते हैं । तिर्यञ्च सम्बन्धी उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं यथा I भय से, द्वेष से, आहार के लिए और अपने बच्चों की और स्थान की रक्षा के लिए तिर्यञ्च उपसर्ग देते हैं । आत्म संचेतनीय यानी अपने आप स्वयं उत्पन्न किये हुए उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं यथा - घट्टनता यानी आंख आदि में पड़ी हुई धूल को निकालने से होने वाली वेदना, प्रपतनता यानी चलते चलते गिर पड़ने से होने वाली वेदना, स्तम्भनता यानी अधिक देर तक बैठे रहने से पैर आदि के स्तम्भित होने से पैदा होने वाली वेदना और श्लेषणता यानी वादी (वात) वगैरह आ जाने से हाथ पैर आदि का ज्यों का रह जाना । इस प्रकार आत्मसंचेतनीय उपसर्ग होते हैं । विवेचन - धर्म से जो भ्रष्ट करते हैं ऐसे दुःख विशेष उपसर्ग कहलाते हैं । कर्त्ता के भेद से उपसर्ग चार प्रकार के कहे हैं - १. देव सम्बन्धी २. मनुष्य सम्बन्धी ३. तिर्यंच सम्बन्धी ४. आत्मसंवेदनीय । देव चार प्रकार से उपसर्ग देते हैं - १. हास्य २. प्रद्वेष ३. परीक्षा ४. विमात्रा । विमात्रा का अर्थ है विविध मात्रा अर्थात् कुछ हास्य, कुछ प्रद्वेष कुछ परीक्षा के लिए उपसर्ग देना अथवा हास्य से प्रारम्भ कर द्वेष से उपसर्ग देना आदि । मनुष्य सम्बन्धी उपसर्ग के भी चार प्रकार हैं १. हास्य २. प्रद्वेष ३. परीक्षा ४. कुशील प्रति सेवना । तिर्यच चार बातों से उपसर्ग देते हैं - १. भय से २. प्रद्वेष से ३. आहार के लिये ४. संतान एवं अपने लिए रहने के स्थान की रक्षा के लिए । अपने ही कारण से होने वाला उपसर्ग आत्मसंवेदनीय है। इसके चार भेद २. प्रपतन ३. स्तम्भन ४. श्लेषण । १. घट्टन - अपने ही अङ्ग यानी अंगुली आदि की रगड़ से होने वाला घट्टन उपसर्ग है। जैसे - आंखों में धूल पड़ गई। आँख को हाथ से रगड़ा। इससे आँख दुःखने लग गई। २. प्रपतन - बिना यतना के चलते हुए गिर जाने से चोट आदि का लग जाना। - ३. स्तम्भन - हाथ पैर आदि अवयवों का सुन्न हो जाना। ४. श्लेषण - अंगुली आदि अवयवों का आपस में चिपक जाना। वात, पित्त, कफ एवं सन्निपात (वात, पित्त, कफ का संयोग ) से होने वाला उपसर्ग श्लेषण है। ये सभी आत्मसंवेदनीय उपसर्ग हैं। For Personal & Private Use Only १. घट्टन www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy