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________________ स्थान ४ उद्देशक ४ ४३५ अथवा श्रुत आदि से परिपूर्ण है और पूर्ण ही दिखाई देता है । कोई एक पुरुष धन से अथवा श्रुत से परिपूर्ण है किन्तु अवसर के अनुकूल कार्य न करने से तुच्छ के समान दिखाई देता है । कोई एक पुरुष तुच्छ यानी धन से अथवा श्रुत आदि से रहित है किन्तु अवसर के अनुकूल प्रवृत्ति करने से परिपूर्ण के समान दिखाई देता है। कोई एक पुरुष तुच्छ यानी धन से अथवा श्रुत आदि से रहित है और तुच्छ ही दिखाई देता है । चार प्रकार के कुम्भ कहे गये हैं यथा - कोई एक घड़ा जल आदि से परिपूर्ण है और सुन्दर आकार वाला है । कोई एक घड़ा जल आदि से परिपूर्ण है किन्तु तुच्छ रूप यानी रूप से हीन है। कोई एक घड़ा जल आदि से रहित है किन्तु सुन्दर रूप वाला है । कोई एक घड़ा जल आदि से रहित है और रूप से भी हीन है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष पूर्ण यानी ज्ञान आदि से परिपूर्ण है और पूर्णरूप यानी रजोहरण आदि द्रव्य लिङ्ग से युक्त है । कोई एक पुरुष ज्ञान आदि से परिपूर्ण है किन्तु किसी कारणवश रजोहरण आदि द्रव्य लिङ्ग से रहित है । कोई पुरुष ज्ञान आदि से रहित है किन्तु पूर्णरूप पानी रजोहरण आदि द्रव्य लिङ्ग से युक्त है । कोई एक पुरुष ज्ञानादि से रहित है और रजोहरण आदि द्रव्य लिङ्ग से भी रहित है । चार प्रकार के कुम्भ कहे गये हैं यथा - कोई एक घड़ा अवयवादि से परिपूर्ण है और सोने का बना हुआ होने से प्रिय है । कोई एक घड़ा अवयवादि से परिपूर्ण है किन्तु मिट्टी आदि असार द्रव्य का बना हुआ है । कोई एक षड़ा अपूर्ण अवयव वाला है किन्तु सोने आदि का बना हुआ होने से प्रिय है । कोई एक घड़ा अपूर्ण अवयव वाला है और मिट्टी आदि असार द्रव्य का बना हुआ है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष धन से अथवा श्रुत आदि से परिपूर्ण है और प्रिय वचन बोलने से प्रियकारी है । कोई एक पुरुष धन से अथवा श्रुत आदि से परिपूर्ण है किन्तु प्रिय वचन न बोलने से अप्रियकारी है । कोई एक पुरुष तुच्छ यानी धन से अथवा श्रुत आदि से रहित है किन्तु प्रिय वचन बोलने से प्रियकारी है । कोई एक पुरुष धन से अथवा श्रुत आदि से रहित है और प्रिय वचन न बोलने से अप्रियकारी है । चार प्रकार के कुम्भ कहें गये हैं यथा - कोई एक घड़ा जल आदि से परिपूर्ण है और उसमें से पानी । निकलता है । कोई एक घड़ा जल आदि से परिपूर्ण है किन्तु उसमें से जल नहीं निकलता है । कोई एक षड़ा घोड़ें जल वाला है किन्तु उसमें से भी जल निकलता है । कोई एक घड़ा थोड़े जल वाला है किन्तु उसमें से पानी नहीं निकलता है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये है यथा - कोई एक पुरुष धन से और श्रुत आदि से युक्त है और धन तथा श्रुत दूसरों को देता है । कोई एक पुरुष धन से एवं श्रुतादि से युक्त है किन्तु धन, श्रुतादि दूसरों को नहीं देता है । कोई एक पुरुष थोड़ा धन एवं श्रुत वाला है किन्तु फिर भी धन श्रुतादि दूसरों को देता है। कोई एक पुरुष थोड़ा धन एवं श्रुत वाला है और उसमें से दूसरों को नहीं देता है। चार प्रकार के कुम्भ कहे गये हैं यथा - भिन्न यानी फूटा हुआ, जर्जरित यानी तेड़ आया हुआ, परिस्रावी अच्छी तरह से पका हुआ न होने से झरने वाला और अपरिखावी यानी न झरने वाला। इसी तरह चार प्रकार का चारित्र कहा गया है यथा - भिन्न यानी मूल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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