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________________ ४२० श्री स्थानांग सूत्र ३. गण्डीपद - सुनार की एरण के समान चपटे पैर वाले चतुष्पद गण्डीपद कहलाते हैं। जैसे हाथी, गेण्डा आदि। ४. सनख पद - जिनके पैरों में नख हों, वे सनख चतुष्पद कहलाते हैं। जैसे सिंह, चीता, कुत्ता, बिल्ली आदि। ' पक्षी चार - १. चर्म पक्षी २. रोम पक्षी ३. समुद्गक पक्षी ४. वितत पक्षी। १. चर्म पक्षी - चर्ममय पंख वाले पक्षी चर्मपक्षी कहलाते हैं। जैसे चिमगादड़ आदि। २. रोमपक्षी - रोम मय पंख वाले पक्षी रोम पक्षी कहलाते हैं। जैसे हंस आदि। ३. समुदगक पक्षी- डब्बे की तरह बन्द पंख वाले पक्षी समुद्गक पक्षी कहलाते हैं। ४. विततपक्षी - फैले हुए पंख वाले पक्षी विततपक्षी कहलाते हैं। समुद्गकपक्षी और विततपक्षी ये दोनों जाति के पक्षी अढ़ाई द्वीप के बाहर ही होते हैं। अर्थात् अढाई द्वीप में तो दो ही प्रकार के पक्षी होते हैं और अढ़ाई द्वीप के बाहर चारों प्रकार के पक्षी होते हैं। क्षुद्र प्राणी - क्षुद्र शब्द का अर्थ तुच्छ होता है किन्तु यहाँ पर क्षुद्र शब्द का अर्थ यह नहीं है। किन्तु जो दूसरे भव में मोक्ष जाने की योग्यता वाले नहीं है ऐसे प्राणियों को यहाँ क्षुद्र कहा है। क्षुद्र प्राणी चार प्रकार के कहे हैं - १. बेइन्द्रिय - दो इन्द्रियों वाले लट, गिण्डोला, सीप, शंख आदि। २. तेइन्द्रिय - तीन इन्द्रियों वाले, जूं, लीख आदि। ३. चउरिन्द्रिय - चार इन्द्रियों वाले - मक्खी, मच्छर आदि और ४. सम्मूच्छिम तिर्यच पञ्चेन्द्रिय - असंज्ञी-मन रहित तिर्यंच पंचेन्द्रिय। जैसे बरसाती मेंढक आदि। जिस प्रकार पृथ्वी, पानी और वनस्पति तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव उस भव का आयुष पूरा करके अगले भव में संज्ञी मनुष्य बन कर मोक्ष जा सकते हैं। किन्तु बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय उस भव का आयुष पूरा करके दूसरे भव में मोक्ष नहीं जा सकते हैं। . पक्षियों जैसे भिक्षुक चत्तारि पक्खी पण्णत्ता तंजहा - णिवइत्ता णाममेगे णों परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे णो णिवइत्ता, एगे णिवइत्ता वि परिवइत्ता वि, एगे णो णिवइत्ता णो परिवइत्ता । एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता तंजहा - णिवइत्ता णाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे णो णिवइत्ता, एगे णिवइत्ता वि परिवइत्ता वि, एगे णो णिवइत्ता णो परिवइत्ता। सबलता दुर्बलता चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - णिक्कट्टे णाममेगे णिक्कट्टे, णिक्कडे णाममेगे अणिक्कटे, अणिक्कटे णाममेगे णिक्कटे, अणिक्कटे णाममेगे अणिक्कठे। चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - णिक्कटे णाममेगे णिक्कट्ठप्पा, णिक्कट्ठे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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