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स्थान.४ उद्देशक ४
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२. क्रिया की क्या जरूरत है? केवल चित्त की पवित्रता होनी चाहिए। इस प्रकार ज्ञान ही से मोक्ष . की मान्यता वाले अक्रियावादी कहलाते हैं।
३. जीवादि के अस्तित्व को न मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं। अक्रियावादी के ८४ भेद होते हैं। यथा -
जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्त्वों के स्व और पर के भेद से १४ भेद होते हैं। काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा इन छहों की अपेक्षा १४ भेदों का विचार करने से ८४ भेद होते हैं। जैसे जीव स्वतः काल से नहीं है। जीव परतः काल से नहीं है। इस प्रकार काल की अपेक्षा जीव के दो भेद होते हैं। काल की तरह यदृच्छा, नियति आदि की अपेक्षा भी जीव के दो दो भेद होते हैं। इस प्रकार जीव के १२ भेद होते हैं। जीव की तरह शेष तत्त्वों के भी बारह बारह भेद होते हैं। इस तरह कुल ८४ भेद होते हैं।
३. अज्ञानवादी - जीवादि अतीन्द्रिय पदार्थों को जानने वाला कोई नहीं है। न उनके जानने से कुछ सिद्धि ही होती है। इसके अतिरिक्त समान अपराध में ज्ञानी को अधिक दोष माना है और अज्ञानी को कम। इसलिए अज्ञान ही श्रेय रूप है। ऐसा मानने वाले अज्ञानवादी हैं। . अज्ञानवादी के ६७ भेद होते हैं। यथा - ... जीव, अजीव, आस्रव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन नव तत्त्वों के सद्, असद्, सदसद्, अवक्तव्य, सदवक्तव्य, असदवक्तव्य, सदसदवक्तव्य इन सात भांगों से ६३ भेद होते हैं और उत्पत्ति के सद्, असद् और अवक्तठा की अपेक्षा से चार भंग हुए। इस प्रकार ६७ भेद अज्ञान वादी के होते हैं। जैसे जीव सद् है यह कौन जानता है? और इसके जानने का क्या प्रयोजन है? ..४. विनयवादी - स्वर्ग, अपवर्ग आदि के कल्याण की प्राप्ति विनय से ही होती है। इसलिए विनय ही श्रेष्ठ है। इस प्रकार विनय को प्रधान रूप से मानने वाले विनयवादी कहलाते हैं।
विनयवादी के ३२ भेद होते हैं -
देव, राजा, यति, ज्ञाति, स्थविर, अधम, माता और पिता इन आठों का मन, वचन, काया और दान, इन चार प्रकारों से विनय होता है। इस प्रकार आठ को चार से गुणा करने से ३२ भेद होते हैं। ये चारों वादी मिथ्या दृष्टि हैं।
क्रियावादी जीवादि पदार्थों के अस्तित्व को ही मानते हैं। इस प्रकार एकान्त अस्तित्व को मानने से इनके मत में पररूप की अपेक्षा से नास्तित्व नहीं माना जाता है। पररूप की अपेक्षा से वस्तु में नास्तित्व न मानने से वस्तु में स्वरूप की तरह पररूप का भी अस्तित्व रहने से एक ही वस्तु सर्वरूप हो जायगी। जो कि प्रत्यक्ष बाधित है। इस प्रकार क्रियावादियों का मत मिथ्यात्व पूर्ण है।
___ अक्रियावादी जीवादि पदार्थ को नहीं मानते हैं। इस प्रकार असद्भूत अर्थ का प्रतिपादन करते हैं। इसलिए वे भी मिथ्या दृष्टि हैं। एकान्त रूप से जीव के अस्तित्व का प्रतिषेध करने से उनके मत में
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