________________
३७०
श्री स्थानांग सूत्र
कोई एक दूसरों की वैयावच्च करता भी है और दूसरों से वैयावच्च करवाता भी है, जैसे स्थविरकल्पी साधु । कोई एक दूसरों की वैयावच्च नहीं करता है और न दूसरों से वैयावच्च करवाता है, जैसे जिनकल्पी साधु ।
चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष अर्थकर यानी अपने लिए धनादि प्राप्त करने वाला होता है किन्तु अभिमान नहीं करता है । कोई एक पुरुष अभिमान करता है किन्तु धनादि प्राप्त नहीं करता है । कोई एक पुरुष धनादि भी प्राप्त करता है और अभिमान भी करता है । कोई एक पुरुष न तो धनादि प्राप्त करता है और न अभिमान करता है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष (साधु) कहे गये हैं येथा - कोई एक साधु गण यानी साधु समुदाय का हित करता है किन्तु अभिमान नही करता है । कोई एक साधु अभिमान करता है किन्तु गण का हित नहीं करता है । कोई एक साधु गण का हित भी करता है और अभिमान भी करता है । कोई एक साधु न तो गण का हित करता है और न अभिमान करता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक साधु साधुओं के गण के लिए आहार और ज्ञानादि का संग्रह करता है किन्तु इसका अभिमान नहीं करता है । कोई एक साधु अभिमान करता है किन्तु गण के लिए उपधि आदि का संग्रह नहीं करता है। कोई एक साधु गण के लिए ज्ञानारि का संग्रह भी करता है और अभिमान भी करता है । कोई एक साधु न तो गण के लिए उपधि आदि क संग्रह करता है और न अभिमान करता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक साधु गण की शोभा करने वाला होता है किन्तु अभिमान नहीं करता है। कोई एक साधु अभिमान करता है किन्तु गण की शोभा करने वाला नहीं होता है । कोई एक साधु गण की शोभा करने वाला भी होता है और अभिमान भी करता है । कोई एक साधु न तो गण की शोभा करने वाला होता है और न अभिमान करता है। ___चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक साधु गण की शुद्धि करने वाला होता है किन्तु अभिमान नहीं करता है । कोई एक साधु अभिमान करता है किन्तु मण की शुद्धि करने वाला नहीं होता है । कोई एक साधु गण की शुद्धि करने वाला भी होता है और अभिमान भी करता है । कोई एक साधु न तो गण की शुद्धि करने वाला होता है और न अभिमान करता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक साधु रूप को यानी साधुवेष को छोड़ देता है किन्तु धर्म को नहीं छोड़ता है । कोई एक साधु धर्म को छोड़ देता है किन्तु साधुवेष को नहीं छोड़ता है । कोई एक साधु साधुवेष को भी छोड़ देता है और धर्म को भी छोड़ देता है । कोई एक साधु न तो रूप-साधुवेश को छोड़ता है और न धर्म को छोड़ता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक साधु धर्म को छोड़ देता है किन्तु अपने गच्छ की मर्यादा को नहीं छोड़ता है । कोई एक साधु अपने गच्छ की मर्यादा को छोड़ देता है किन्तु धर्म को नहीं छोड़ता है । कोई एक साधु धर्म को भी छोड़ देता है और अपने गच्छ की
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org