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स्थान ४ उद्देशक ३
३५५ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 किन्तु दूसरे का विश्वास एवं हित नहीं करता है । कोई एक पुरुष दूसरे का विश्वास एवं हित करता है किन्तु अपनी आत्मा का विश्वास एवं हित नहीं करता है। कोई एक पुरुष अपनी आत्मा का भी विश्वास एवं हित करता है और दूसरे का भी विश्वास एवं हित करता है । कोई एक पुरुष न तो अपनी आत्मा का विश्वास एवं हित करता है और न दूसरे का विश्वास एवं हित करता है।
विवेचन - इस सूत्र में क्रोध और उसकी उपमाओं का वर्णन किया गया है। चार प्रकार के भाव-मानसिक प्रवृत्तियाँ कही है। भावों के अनुसार ही जीव कर्मों का उपार्जन करता है और कर्मानुसार ही जीव को फल भोगना पड़ता है। उपरोक्त सूत्र में दूषित जल के माध्यम से कर्मों का एवं उनके फलभोग का वर्णन किया गया है।
__ वृक्ष और मनुष्य चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता तंजहा - पत्तोवए, पुष्फोवए, फलोवए, छायोवए । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - पत्तोवारुक्खसमाणे, पुष्फोवारुक्खसमाणे, फलोवारुक्खसमाणे, छायोवारुक्खसमाणे।
___ चार विश्राम भारं णं वहमाणस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता तंजहा - जत्थ णं अंसाओ अंसं साहरइ तत्थ वि य से एगे आसासे पण्णत्ते, जत्थ वि य णं उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठावेइ तत्थ वि य से एगे आसासे पण्णत्ते, जत्थ वि य णं णागकुमारावासंसि वा सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उवेइ तत्थ वि य से एगे आसासे पण्णत्ते, जत्थ वि य णं आवकहाए चिट्ठइ तत्थ वि य से एगे आसासे पण्णत्ते । एवामेव समणोवासगस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता तंजहा - जत्थ णं सीलव्वयगुणव्वयवेरमण पच्चक्खाणपोसहोववासाइं पडिवजेइ तत्थ वि य से एगे आसासे पण्णत्ते, जत्थ वि य णं सामाइयं देसावगासियं सम्ममणुपालेइ तत्थ वि य से एगे आसासे पण्णत्ते, जत्थ वि य चाउद्दसट्ठमुहिठ्ठपुण्णमासिसु पडिपुण्णं पोसहं सम्ममणुपालेइ तत्थ वि य से एगे आसासे पण्णत्ते, जत्थ वि य णं अपच्छिममारणंतिय संलेहणा झूसणाझूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालमणवकंखमाणे विहरइ तत्थ वि य से एगे आसासे पण्णत्ते॥१६६॥
कठिन शब्दार्थ - पत्तोवए - पत्तों वाला, पुष्फोवए - फूलों वाला, फलोवए - फलों वाला, छायोवए - छाया वाला, अंसाओ - एक कन्धे से, अंसं - दूसरे कन्धे पर, आसासा - विश्राम स्थान.
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