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स्थान ४ उद्देशक २
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दधिमुख पर्वत और वनखण्डों तक जैसा कि पहले कहा गया है वैसा ही कह देना चाहिए । उन में जो पश्चिम दिशा का अञ्जनक पर्वत है उसके चारों तरफ चारों दिशाओं में चार नन्दा पुष्करणियाँ कही गई हैं । यथा - नन्दिषेणा, अमोघा, गोस्थूभ, सुदर्शना । दधिमुख पर्वत, सिद्धायतन यावत् वनखण्डों तक शेष सारा अधिकार जैसा पहले कहा है वैसा ही कह देना चाहिए। उन में से जो उत्तर दिशा का अञ्जनक पर्वत है उसके चारों तरफ चारों दिशाओं में चार नन्दा पुष्करणियाँ कही गई हैं । यथा - विजया, वैजयंती जयन्ती और अपराजिता। वे पुष्करणियाँ एक लाख योजन की लम्बी हैं । इत्यादि उनका प्रमाण पहले के अनुसार ही है। इसी प्रकार दधिमुख पर्वत, सिद्धायतन यावत् वनखण्ड तक सारा अधिकार जैसा पहले कहा गया है वैसा ही जानना चाहिए ।
नन्दीश्वर द्वीप के चक्रवाल विष्कम्भ के मध्य भाग में चारों विदिशाओं में चार रतिकर पर्वत कहे गये हैं । यथा - उत्तर और पूर्व के बीच का अर्थात् ईशान कोण का रतिकर पर्वत, दक्षिण और पूर्व के बीच का यानी आग्नेय कोण का रतिकर पर्वत, दक्षिण और पश्चिम के बीच का यानी नैऋत्य कोण का रतिकर पर्वत और उत्तर और पश्चिम के बीच का यानी वायव्य कोण का रतिकर पर्वत । वे रतिकर पर्वत दस सौ यानी एक हजार योजन ऊंचे हैं और एक हजार कोस धरती में उंडे हैं । ऊपर, नीचे और बीच में सब जगह समान हैं। झालर के आकार वाले हैं। दस हजार योजन चौड़े हैं । ३१६२३ (इकतीस हजार छह सौ तेईस) योजन की परिधि है । सब रत्नमय हैं और सुन्दर यावत् प्रतिरूप हैं । उनमें जो ईशान कोण का रतिकर पर्वत हैं उसके चारों तरफ चारों दिशाओं में देवों के इन्द्र देवों के राजा ईशानेन्द्र की कृष्णा, कृष्णराजि, रामा और रामरक्षिता इन चार अग्रमहिषियों की ज़म्बूद्वीप प्रमाण यानी एक लाख योजन की चार राजधानियां कही गई हैं । यथा - नन्दोत्तरा, नन्दा, उत्तरकुरा और देवकुरा । उनमें जो आग्नेय कोण में रतिकर पर्वत है उसके चारों तरफ चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र की पद्मा शिवा, शची और अञ्जू, इन चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप प्रमाण यानी एक लाख योजन की चार राजधानियाँ कही गई हैं । यथा - सुमना, सोमनसा, अचिमाली आर मनारमा। उन
में जो नैऋत्य कोण में रतिकर पर्वत है उसके चारों तरफ चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र की अमला, अप्सरा, नवमिका और रोहिणी इन चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप प्रमाण यानी एक लाख योजन की चार राजधानियां कही गई हैं । यथा - भूता, भूतावतंसा, गोस्तूभा और सुदर्शना । उनमें वायव्य कोण में जो रतिकर पर्वत है । उसके चारों तरफ चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज ईशातेन्द्र की वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा और वसुंधरा इन चार की जम्बूद्वीप प्रमाण यानी एक लाख योजन की चार राजधानियाँ कही गई हैं । यथा - रत्ना, रत्नोच्चया, सर्वरत्ना और रत्नसञ्चया ।
विवेचन - १. जंबूद्वीप और लवण समुद्र २. धातकीखण्ड द्वीप और कालोदधि ३. पुष्करवर द्वीप से प्रारंभ होकर ४. वारुणी ५. क्षीर ६. घृत ७. इक्षु ८. नंदीश्वर और ९. अरुण नाम के द्वीप और समुद्र
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