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श्री स्थानांग सूत्र
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वाला, छोटे दांत नख और केशों वाला स्वभाव से ही डरपोक, त्रस्त यानी भय का कारण आने पर कान आदि इन्द्रियों को स्तम्भित करने वाला उद्विग्न यानी जरा सा कष्ट आने पर या चलने आदि में खेद को प्राप्त होने वाला और त्रासी यानी स्वयं डर कर दूसरों को भी भयभीत करने वाला मृग नामक हाथी होता है ॥ ३ ॥
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जो हाथी ऊपर कहे गये हाथियों के थोड़े थोड़े रूप और गुणों को धारण करे वह संकीर्ण हाथी है । ऐसा जानना चाहिए ॥ ४ ॥
भद्र हाथी शरद ऋतु में मद को प्राप्त होता है । मन्द हाथी वसन्त ऋतु में मद्र को प्राप्त होता है । मृग हाथी हेमन्त ऋतु में मद को प्राप्त होता है और संकीर्ण हाथी सब समय में मद को प्राप्त होता है ॥ ५ ॥
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में हाथी का दृष्टान्त देकर चौभंगियाँ बतलाई गई हैं जिन्हें पुरुष दान्तिक के साथ घटाई गई हैं।
विकथा और धर्मकथा के भेद
चत्तारि विकहाओ पण्णत्ताओ तंजहा - इत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा। इत्यिकहा चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा- इत्थीणं जाइ कहा, इत्थीणं कुल कहा, . इत्थीणं रूव कहा, इत्यीणं णेवत्थ कहा। भत्त कहा चडव्विहा पण्णत्ता तंजहा भत्तस्स आवाव कहा, भत्तस्स णिव्वाव कहा, भत्तस्स आरंभ कहा, भत्तस्स णिट्ठाण कहा । देस कहा चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा - देसविहि कहा, देसविकप्प कहा, देसच्छंद कहा, देसणेवत्थ कहा । राय कहा चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा - रण्णो अइयाण कहा, रण्णो णिज्जाण कहा, रण्णो बलवाहण कहा, रण्णो कोसकोट्ठागार कहा । चंडव्विहा धम्म कहा पण्णत्ता तंजहा - अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेगणी, णिव्वेयणी । अक्खेवणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा - आयार अक्खेवणी, ववहार अक्खेवणी, पण्णत्ति अक्खेवणी, दिट्ठिवाय अक्खेवणी । विक्खेवणी कहा . चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा - ससमयं कहेइ ससमयं कहित्ता परसमयं कहेइ, परसमयं कहित्ता ससमयं ठावइत्ता भवइ, सम्मावायं कहेइ सम्मावायं कहित्ता मिच्छा वायं कहेइ, मिच्छावायं कहित्ता सम्मावायं ठावइत्ता भवइ । संवेगणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा - इह लोग संवेगणी, परलोग संवेगणी, आयसरीर संवेगणी, परसरीर संवेगणी । णिव्वेगणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा - इह लोगे दुचिण्णा कम्मा
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