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________________ १४ 10000000000000 भावार्थ - समय एक है। प्रदेश एक है। परमाणु एक है। सिद्धि यानी सिद्धशिला - ईषत्प्राग्भारा एक ही है। सिद्ध स्वरूप की अपेक्षा से एक है। परिनिर्वाण यानी सब दुःखों से मुक्त होना रूप निर्वाण एक है । सब दुःखों से छुटकारा पाकर सिद्ध हो जाने रूप सिद्ध अवस्था एक है ।। ४ । विवेचन समय काल के अविभाज्य अति सूक्ष्म अंश को समय कहते हैं । यह काल का अंतिम खण्ड होता है। समय का विभाजन नहीं हो सकता है। सब से छोटा काल वर्तमान समय है । प्रदेश - 'प्रकृष्टो निरंशो धर्माधर्माकाशजीवानां देशः - अवयव विशेषः प्रदेश: ' - प्रकृष्ट अंशरहित धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवों का देश प्रदेश कहलाते हैं। - श्री स्थानांग सूत्र 000000 परमाणु-परम-अत्यंत अणु - सूक्ष्म वह परमाणु । पुद्गल द्रव्य के चरम सूक्ष्म भाग को परमाणु कहते हैं। टीकाकार श्री अभयदेवसूरि ने परमाणु के विषय में निम्न प्राचीन श्लोकं दिया है - कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एक रस वर्ण गन्ध द्वि स्पर्शः कार्यलिंङ्गश्च ॥ कादि स्कन्धों का कारणभूत परमाणु है अर्थात् पदार्थ का अंतिम से अंतिम कारण सूक्ष्म और नित्य परमाणु है। जो एक वर्ण, एक रस, एक गंध और दो अविरोधी स्पर्श वाला होता है जिसे कार्य से ही जाना जाता है। सिद्ध- जिन जीवों ने सिद्धि प्राप्त कर ली है अर्थात् जो आठ कर्मों को क्षय कर मुक्त हो चुके हैं, जो पुनः नहीं आने रूप लोकाग्र को प्राप्त हुए हैं जो कृतकृत्य हो चुके हैं, वे सिद्ध हैं। परिनिर्वाण - परि अर्थात् सर्वथा, निर्वाण अर्थात् सकल कर्मों के विकार रहित होने से स्वस्थ होना परिनिर्वाण कहलाता है अर्थात् जब आत्मा कर्म कलंक से सर्वथा रहित होकर आत्मलीन हों जाता है उस दशा को परिनिर्वाण कहते हैं। Jain Education International परिनिर्वृत- जब आत्मा शारीरिक और मानसिक दुःखों से सर्वथा छूट जाता है अथवा स्व स्वरूप में तल्लीन होने से जो आत्मा परम शांति का अनुभव करता है उसे परिनिर्वृत कहा जाता है। सिद्धात्मा का वर्णन करने के पश्चात् अब सूत्रकार पुद्गलास्तिकाय के गुणों को बतलाते हैं। एगे सद्दे । एगे रूवे । एगे गंधे। एगे रसे । एगे फासे । एगे सुब्भिसद्दे। एगे दुब्धिसद्दे । एगे सुरूवे । एगे दुरूवे । एगे दीहे। एगे हस्से । एगे वट्टे । एगे तंसे । एगे चउरंसे । एगे पिहुले । एगे परिमंडले । एगे किण्हे । एगे णीले । एगे लोहिए। एगे हलिछे । एगे सुकिल्ले । एगे सुभगंधे। एगे दुब्धिगंधे। एगे तित्ते । एगे कडुए। एगे कसाए । एगे अंबिले । एगे महुरे । एगे कक्खडे जाव एगे लुक्खे ॥ ५ ॥ कठिन शब्दार्थ - सद्दे शब्द, रूवे रूप, दीहे दीर्घ, हस्से - ह्रस्व, वट्टे - वृत्त, तंसे - - - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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