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स्थान ४ उद्देशक १
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सुक्के झाणे चउव्विहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते तंजहा - पुहुत्त वितक्के सवियारी, एगत्तवितक्के अवियारी, सुहुमकिरिए अणियट्टी, समुच्छिण्णकिरिए अप्पडिवाई । सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता तंजहा - अव्वहे, असम्मोहे, विवेगे, विसग्गे । सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता तंजहा - खंती, मुत्ती, मद्दवे, अज्जवे । सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ तंजहा अणंतवत्तियाणुप्पेहा, विष्परिणामाणुप्पेहा, असुभाणुप्पेहा, अवायाणुप्पेहा ॥ १३१ ॥
कठिन शब्दार्थ - झाणा - ध्यान, अट्टे - आर्त, रोद्दे - रौद्र, धम्मे धर्म, सुक्के शुक्ल, अमणुण्णसंपओगसंपउत्ते - अमनोज्ञ वस्तु का संयोग होने पर, विप्पओगसइंसमण्णागर - वियोग की चिन्ता करना, मणुण्णसंपओगसंपत्ते - मनोज्ञ वस्तु का संयोग होने पर, आयंकसंपओगसंपउत्तेरोग आतंक के होने पर, परिजुसिय कार्मभोग संपओगसंपउत्ते सेवन किये हुए कामभोगों की प्राप्ति होने पर, लक्खणा - लक्षण, कंदणया क्रन्दनता, सोयणया शोचनता, तिप्पणया तेपनता, परिदेवणया - परिदेवनता, हिंसाणुबंधि - हिंसानुबंधी, मोसाणुबंधि - मृषानुबन्धी, तेणाणुबंधि स्तेनानुबन्धी, सारक्खणाणुबंधि - संरक्षणानुबन्धी, ओसण्णदोसे- ओसन्न दोष, बहुदोसे- बहुल दोष, अण्णा दोसे- अज्ञान दोष, आमरणंतदोसे आमरणान्तदोष, चउप्पडोयारे - चतुष्पदावतार- चार पदों में समावेश होना, आणाविजए - आज्ञा विजय- आज्ञा विचय, अवायविजए अपाय विजय- अपाय विचय, विवागविजय विपाक विजय-विपाक विचय, आणारुई - आज्ञा रुचि, णिसग्गरुई - निसर्ग रुचि, सुत्तरुई - सूत्र रुचि, ओगाढरुई - अवगाढ रुचि, आलंबणा आलम्बन, वायणा - वाचना, पडिपुच्छणया - प्रति पृच्छना, परियट्टणा - परिवर्तना, अणुप्पेहा अनुप्रेक्षा, एगाणुप्पेहा एकानुप्रेक्षा, अणिच्चाणुप्पेहा - अनित्यानुप्रेक्षा, असरणाणुप्पेहा - अशरणानुप्रेक्षा, संसाराणुप्पेहा संसारानुप्रेक्षा, पुहुत्तवितक्के सवियारी- पृथक् वितर्क सविचारी, एगत्तवितक्के अवियारी - एकत्व वितर्क अविचारी, सुहुम किरिए अणियट्टी- सूक्ष्मक्रिया अनिवर्ती, समुच्छिण्ण किरिए अप्पडिवाई - समुच्छिन्न क्रिया अप्रतिपाती, अव्वहे - अव्यथ, असम्मोहे - असम्मोह, विवेगे विवेक, विउस्सग्गे - व्युत्सर्ग, खंती - क्षान्ति क्षमा, मुत्ती मुक्ति निर्ममत्व, निर्लोभता, मद्दवे- मार्दव- मृदुता, अज्जवे - आर्जव सरलता, अणंतवत्तियाणुप्पेहा - अनन्तवर्तितानुप्रेक्षा, विष्परिणामाणुप्पेहा - विपरिणामानुप्रेक्षा, असुभाणुप्पेहा - अशुभानुप्रेक्षा, अवायाणुप्पेहा- अपायानुप्रेक्षा ।
आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और
भावार्थ चार प्रकार के ध्यान कहे गये हैं यथा शुक्लध्यान । आर्त्तध्यान चार प्रकार का कहा गया है यथा अमनोज्ञ वस्तु का संयोग होने पर उसके वियोग की चिन्ता करना । मनोज्ञ वस्तु का संयोग होने पर उसका वियोग न हो इस प्रकार की चिन्ता
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