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... श्री स्थानांग सूत्र
तीसरे स्थान का चौथा उद्देशक . ____पडिमा पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया पडिलेहित्तए तंजहा - अहे आगमण गिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिर्हसि वा, एवमणुण्णवित्तए, उवाइणित्तए। पडिमापडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा पडिलेहित्तए तंजहा - पुढविसिला कट्ठसिला अहासंथडमेव य। एवमणुण्णवित्तए उवाइणित्तए॥ १०१॥
कठिन शब्दार्थ - पडिमा पडिवण्णस्स - पडिमा का धारण करने वाले, उवस्सया - उपाश्रय, पडिलेहित्तए - पडिलेहणा (प्रतिलेखना) करना, आगमणगिहंसि - आने जाने वाले पथिकों के लिए बना हुआ घर, वियडगिहंसि - चारों तरफ से खुला हुआ मकान, रुक्खमूलगिहंसि - वृक्ष का मूल भाग, अणुण्णवित्तए - आज्ञा लेना, उवाइणित्तए - ठहरना, संथारगा - संस्तारक की, पुढविसिलापृथ्वीशिला, कट्ठसिला - काष्ठ शिला, अहासंथडं - तृणादि का संथारा जो पहले से बिछा हुआ हो।
भावार्थ - पडिमा को धारण करने वाले साध के लिए तीन प्रकार के उपाश्रयों में रहने के लिए उनकी पडिलेहणा करना कल्पता है। यथा - आने जाने वाले पथिकों के लिए बना हुआ घर, चारों तरफ से खुला हुआ मकान और वृक्ष का मूल भाग। इसी प्रकार उपरोक्त तीन प्रकार के उपाश्रयों की गृहस्थ से आज्ञा लेना और वहां पर ठहरना कल्पता है। पडिमा धारण करने वाले साधु को तीन प्रकार के संस्तारक की पडिलेहणा करना कल्पता है। यथा-पृथ्वीशिला, काष्ठशिला और तृणादि का संथारा। इसी प्रकार इन तीन संस्तारकों के लिए गृहस्थ की आज्ञा लेना और इन्हें ग्रहण करना कल्पता है। _ विवेचन - उपाश्रय - "उपाश्रीयन्ते-भज्यन्ते. शीतादित्राणार्थ ये ते उपाश्रयाः-वसतयः" शीत आदि की रक्षा के लिये जिसका आश्रय लिया जाता है उसे उपाश्रय कहते हैं। पडिमा को धारण करने वाले साधु के लिये तीन प्रकार के उपाश्रयों की गृहस्थ से आज्ञा लेना और वहां पर ठहरना कल्पता है - १. आने जाने वाले पथिकों के लिए बना हुआ घर, गृहस्थजन आ कर के जहां रहते हैं अथवा जिनके आगमन के लिये जो गृह है वह सभा, प्रपा, आंगंतुक गृह आदि। २. वियड - नहीं ढंका हुआ, उसके दो भेद हैं - १ अधो और २. ऊर्ध्व। जो एक आदि दिशा से खुला है वह; अधोविवृत्त गृह
और माल (मजला) आदि का घर अथवा चारों तरफ से नहीं ढका हुआ किन्तु केवल ऊपर से ढका हुआ है, ऊर्ध्व विवृत्त गृह कहलाता है । ३. वृक्ष का मूल भाग।
तिविहे काले पण्णत्ते तंजहा - तीए पडुप्पण्णे अणागए। तिविहे समए पण्णत्ते तंजहा - तीए पड्डुप्पण्णे अणागए एवं आवलिया आणपाणू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते
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