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________________ स्थान ३ उद्देशक ३ २०५ नवमी और दसवी भिक्षुप्रतिमा सात सात अहोरात्रिकी परिमाण वाली है। ग्यारहवीं भिक्षु पडिमा एक अहोरात्रिकी और बारहवीं मात्र एक रात्रिकी है। इस प्रकार भिक्षु की १२ प्रतिमाएं हैं। जंबूहीवे दीवे तओ कम्मभूमीओ पण्णत्ताओ तंजहा - भरहे एरवए महाविदेहे एवं धायइखंडे दीवे पुरच्छिमद्धे जाव पुक्खर वर दीवड्वपच्चत्थिमद्धे। तिविहे दंसणे पण्णत्ते तंजहा - सम्मदंसणे मिच्छदंसणे सम्मामिच्छदंसणे। तिविहा रुई पण्णत्ता तंजहा - सम्मरुई मिच्छरुई सम्मामिच्छरुई।तिविहे पओगे पण्णत्ते तंजहा - सम्मपओगे मिच्छपओगे सम्मामिच्छपओगे। तिविहे ववसाए पण्णत्ते तंजहा - धम्मिए ववसाए अंधम्मिए ववसाए धम्मियाधम्मिए ववसाए। अहवा तिविहे ववसाए पण्णत्ते तंजहा - पच्चक्खे पच्चइए अणुगामिए। अहवा तिविहे ववसाए पण्णत्ते तंजहा-इहलोइए परलोइए इहलोइयपरलोइए। इहलोइए ववसाए तिविहे पण्णत्ते तंजहा - लोइए वेइए सामइए। लोइए ववसाए तिविहे पण्णत्ते तंजहा - अत्थे धम्मे कामे। वेइए ववसाए तिविहे पण्णत्ते तंजहा - रिउव्वेए जउव्वेए सामवेए। सामइए ववसाए तिविहे पण्णत्तें तंजहाणाणे दंसणे चरित्ते। तिविहा अत्थजोणी पण्णत्ता तंजहा - सामे दंडे भेए॥ १५॥ कठिन शब्दार्थ - पुक्खरवरदीवडपच्चत्थिमद्धे - अर्द्ध पुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्द्ध और पूर्वार्द्ध, दसणे - दर्शन, रुई - रुचि, पओगे - प्रयोग, ववसाए - व्यवसाय, धम्माधम्मिए - धार्मिक अधार्मिक, पच्चइए - प्रात्ययिक, अणुगामिए - आनुगामिक, लोइए - लौकिक, वेइए - वैदिक, सामइए - सामयिक, अत्थे - अर्थ, धम्मे - धर्म, कामे - काम, रिउव्वेए - ऋग्वेद, जउव्वेए - यजुर्वेद, सामवेएसामवेद, अत्थजोणी.- अर्थ योनि। भावार्थ - इस जम्बूद्वीप में तीन कर्म भूमियाँ कही गई हैं। यथा - भरत, ऐरवत और महाविदेह । इसी प्रकार धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध में तथा अर्द्ध पुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्द्ध और पूर्वार्द्ध में तीन तीन कर्म भूमियाँ कहीं गई हैं। तीन प्रकार का दर्शन कहा गया है। यथा - सम्यग्-दर्शन, मिथ्यादर्शन और सममिथ्यादर्शन यानी मिश्रदर्शन। तीन प्रकार की रुचि कही गई हैं। यथा - सम्यग् रुचि, मिथ्यारुचि और सममिथ्यारुचि यानी मिश्ररुचि। तीन प्रकार का प्रयोग कहा गया है। यथा - सम्यक् प्रयोग, मिथ्याप्रयोग और सममिथ्या प्रयोग यानी मिश्र प्रयोग। तीन प्रकार का व्यवसाय कहा गया है। यथा - धार्मिक व्यवसाय, अधार्मिक व्यवसाय और धार्मिकाधार्मिक व्यवसाय यानी मिश्र व्यवसाय । अथवा व्यवसाय यानी निश्चय तीन प्रकार का कहा गया है। यथा - प्रत्यक्ष यानी अवधिज्ञान, मनः पर्ययज्ञान और केवलज्ञान, प्रात्ययिक यानी इन्द्रिय और मन के निमित्त से पैदा होने वाला ज्ञान अथवा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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