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स्थान ३ उद्देशक ३
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सामग्री में मूर्च्छित रहा एवं अप्राप्त भोग सामग्री की इच्छा करता रहा। इस प्रकार मैं शुद्ध चारित्र का पालन न कर सका। .
उपरोक्त तीन बोलों का विचार करता हुआ देवता पश्चात्ताप करता है।
देवता के च्यवन-ज्ञान के तीन बोल हैं - १. विमान के आभूषणों की कान्ति को फीकी देखकर २. कल्पवृक्ष को मुरझाते हुए देखकर ३. तेज अर्थात् अपने शरीर की कान्ति को घटते हुए देख कर देवता को अपने च्यवन (मरण) के काल का ज्ञान हो जाता है।
. १. घनोदधि २. घनवाय और ३. आकाश-इन तीन के आधार से विमान रहे हुए हैं। प्रथम दो कल्प-सौधर्म और ईशान देवलोक में विमान घनोदधि पर रहे हुए हैं। सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में विमान घनवाय पर रहे हुए हैं। लान्तक, शुक्र और सहस्रार देवलोक में विमान घनोदधि और घनवाय दोनों पर रहे हुए हैं। इनके ऊपर आणत, प्राणत, आरण, अच्युत नवग्रैवेयक और अनुत्तर विमान में विमान सिर्फ आकाश पर स्थित है।
__ रहने के लिए जो शाश्वत विमान हैं वे 'अवस्थित' कहलाते हैं और परिचारणा करने के लिए जो विमान बनाये जाते हैं वे 'वैक्रियक' और तिर्छलोक में आने जाने के लिए प्रयोजन से जो विमान बनाये जाते हैं वे 'परियानक' कहलाते हैं। ..
तिविहा णेरड्या पण्णत्ता तंजहा - सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्ममिच्छादिट्ठी एवं विगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं। तओ दुग्गईओ पण्णत्ताओ तंजहा - जेरइय दुग्गई, तिरिक्ख जोणिय दुग्गई, मणुस्स दुग्गई। तओ सुगईओ पण्णत्ताओ तंजहा - सिद्धिसुगई, देवसुगई, मणुस्ससुगई। तओ दुग्गया पण्णत्ता तंजहा - णेरड्यदुग्गया, तिरिक्ख जोणियदुग्गया, मणुस्सदुग्गया। तओ सुगया पण्णत्ता तंजहा - सिद्धसुगया,देवसुगया, मणुस्ससुगया॥९३॥
कठिन शब्दार्थ - दुग्गईओ - दुर्गतियां, सुगईओ - सुगतियाँ, दुग्गया - दुर्गत, सुगया - सुगत-सुगति वाले।
भावार्थ - तीन प्रकार के नैरयिक कहे गये हैं। यथा - समदृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सममिथ्यादृष्टि यानी मिश्र दृष्टि। एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौरिन्द्रिय इनको छोड़ कर यावत् वैमानिक देवों तक इसी प्रकार तीन दृष्टि जाननी चाहिए। तीन दुर्गतियाँ कही गई हैं। यथा - नरक दुर्गति, तिर्यञ्च योनि दुर्गति और नीच कुल में उत्पन्न हुए मनुष्य की अपेक्षा मनुष्यदुर्गति। तीन सुगतियाँ कही गई हैं। यथा - सिद्धि सुगति, देवसुगति और मनुष्य सुगति। तीन दुर्गत कहे गये हैं। यथा - नैरयिक दुर्गति वाले,
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