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________________ १७८ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 तओ पुरिस जाया पण्णत्ता तंजहा - सुमणे दुम्मणे णोसुमणे णोदुमणे। तओ पुरिस जाया पण्णत्ता तंजहा - गंता णामेगे सुमणे भवइ, गंता णामेगे दुम्मणे भवइ, गंताणामेगे जोसुमणे णोदुम्मणे भवइ। तओ पुरिस जाया पण्णत्ता तंजहा - जामि एगे सुमणे भवइ, जामि एगे दुम्मणे भवइ, जामि एगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवइ। एवं जाइस्सामि एगे सुमणे भवइ। तओ पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - अगंता णामेगे सुमणे भवइ। तओ पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - ण जामि एगे सुमणे भवइ। तओ. पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - ण जाइस्सामि एगे सुमणे भवइ। एवं आगंता णामेगे सुमणे भवइ। एमि एगे सुमणे भवइ। एस्सामि एगे सुमणे भवइ, एवं एएणं अहिलावेणं गंता य अगंता य, आगंता खलु तहा अणागंता। चिद्वित्तमपिद्वित्ता, णिसिइत्ता चेव णो चेव।॥ १॥ हंता य अहंता. य, छिंदित्ता खलु तहा अच्छिंदित्ता। हत्ता अत्ता य, भासित्ता चेव णो चेव॥ २॥ दच्चा य. अदच्चा य, भुंजित्ता खलु तहा अभुंजित्ता। लंभित्ता अलंभित्ता य, पिइत्ता चेव णो चेव।। ३॥ सत्ता असुत्ता य, जुज्झित्ता खलु तहा अजुज्झित्ता। जइत्ता अजइत्ता य, पराजिणित्ता-चेव,णो चेव॥ ४ ॥ सहा रूवा गंधा रसा य, फासा तहेव ठाणा य। णिस्सीलस्स गरहिया, पसत्था पुण सीलवंतस्स॥५॥ एवमिक्केक्के तिण्णि उ तिण्णि उ आलावगा भाणियव्वा। सई सुणित्ता णामेगे सुमणे भवइ, एवं सुणेमीति, सुणिस्सामीति। एवं असुणित्ता णामेगे सुमणे भवइ, ण सुणेमीति, ण सुणिस्सामीति। एवं रूवाइं, गंधाइं, रसाइं, फासाइं, एक्केक्के छ छ आलावगा भाणियव्या। १२७ आलावगा भवंति। तओ ठाणा णिस्सीलस्स णिव्वयस्स णिग्गुणस्स णिम्मेरस्स णिपच्चक्खाण पोसहोववासस्स गरहिया भवंति तंजहा - अस्सिं लोए गरहिए भवइ, उववाए गरहिए भवइ, आयाई गरहिया भवइ । तओ ठाणा सुसीलस्स सुव्वयस्स सुगुणस्स सम्मेरस्स सपच्चक्खाण पोसहोववासस्स पसत्था भवंति तंजहा - अस्सिं लोए पसत्थे भवइ, उववाए पसत्थे भवइ, आजाई पसत्था भवइ ८० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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