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स्थान ३ उद्देशक १ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 एवं पंचिंदियाणं जाव वेमाणियाणं। तिविहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते तंजहा - मणसुप्पणिहाणे वयसुप्पणिहाणे कायसुप्पणिहाणे। संजयमणुस्साणं तिविहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते तंजहा - मणसुप्पणिहाणे वयसुप्पणिहाणे कायसुप्पणिहाणे।तिविहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते तंजहा - मणदुप्पणिहाणे वयदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे एवं पंचिंदियाणं जाव वेमाणियाणं। तिविहा जोणी पण्णत्ता तंजहा सीया उसिणा सीओसिणा, एवं एगिदियाणं विगलिंदियाणं तेउकाइय वजाणं सम्मच्छिम पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं सम्मुच्छिम मणुस्साण य ।तिविहा जोणी पण्णत्ता तंजहा - सचित्ता अचित्ता मीसिया, एवं एगिदियाणं विगलिंदियाणं सम्मुच्छिमपंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं सम्मुच्छिम मणुस्साण य। तिविहा जोणी पण्णत्ता तंजहा - संवुडा वियडा संवुडवियडा। तिविहा जोणी पण्णत्ता तंजहा - कुम्मुण्णया संखावत्ता वंसीपत्तिया। कुमुण्णया णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं कुम्मुग्णयाए णं जोणीए तिविहा उत्तम पुरिसा गब्भं वक्कमंति तंजहा - अरिहंता चक्कवट्टी बलदेववासुदेवा। संखावत्ता जोणी इत्थीरयणस्स, संखावत्ताए णं जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति विउक्कमति चयंति उववजति णो चेव णं णिप्फजंति।वंसीपत्तिया णं जोणी पिहजणस्स, वंसीपत्तियाए णं जोणीए बहवे पिहज्जणे गब्भं वक्कमंति॥६९॥
कठिन शब्दार्थ - पणिहाणे - प्रणिधान, सुप्पणिहाणे - सुप्रणिधान, दुप्पणिहाणे - दुष्प्रणिधान, सीया - शीत, उसिण - उष्ण, सीओसिणा - शीतोष्ण, तेउकाइयवजाणं - तेउकाय को छोड़ कर, जोणी - योनि, सचित्ता - सचित्त, अचित्ता - अचित्त, मीसिया - मिश्र, संवुडा - संवृत्त, वियडा - विवृत्त, संवुडवियडा- संवृत्त विवृत्त, कुम्मुण्णया - कूर्मोन्नता, संखावत्ता - शंखावर्ता, वंसीपत्तिया - वंशीपत्रिका, उत्तम पुरिसमाऊणं - उत्तम पुरुषों की माताओं के, इत्थीरयणस्स - स्त्री रत्न के, वक्कमंतिउत्पन होते हैं, विउक्कमति - नष्ट होते हैं, चयंति - चवते हैं, उववजंति - उत्पन्न होते हैं, णिप्फजंतिनिपजते हैं, पिहजणे - सामान्य मनुष्य।
भावार्थ - तीन प्रकार का प्रणिधान कहा गया है। यथा - मनःप्रणिधान, वचनप्रणिधान और कायप्रणिधान । इस प्रकार यावत् वैमानिकों तक सब पञ्चेन्द्रिय जीवों के होते हैं क्योंकि एकेन्द्रिय जीवों के सिर्फ काया और विकलेन्द्रिय जीवों के काया और वचन ये दो योग ही पाये जाते हैं। तीन प्रकार का सुप्रणिधान कहा गया है। यथा - मनःसुप्रणिधान, वचनसुप्रणिधान कायसुप्रणिधान। संयत मनुष्यों के तीन सुप्रणिधान कहे गये हैं। यथा - मनःसुप्रणिधान, वचनसुप्रणिधान, कायसुप्रणिधान । तीन प्रकार का
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