________________
१२४
मूल पाठ में 'जाव' शब्द से निम्न पाठ का ग्रहण हुआ है- "केवल बोहिं बुज्झेजा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जा केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, केवलेणं संजमेणं संजमिज्जा, केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, केवलं आभिणिबोहियणाणमुप्पाडेज्जा" सम्यक्त्व, दीक्षित होना, ब्रह्मचर्य का पालन, संयम, संवर, मतिज्ञान आदि क्षयोपशम भाव से ही पैदा होते हैं इस कारण सूत्रकार ने क्षयोपशमजन्य सद्गुणों का ही वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया है।
दुविहे अद्धोवमिए पण्णत्ते तंजहा पलिओवमे चेव सागरोवमे चेव । से किं तं पलिओ मे ? पलिओवमे -
जं जोयणविच्छिण्णं, पल्लं एगाहियप्परूढाणं ।
होज्ज णिरंतर णिचियं, भरियं बालग्ग कोडीणं ॥ १ ॥ वाससए वाससए एक्केक्के, अवहडम्मि जो कालो । सो कालो बोद्धव्वो, उवमा एगस्स पल्लस्स ॥ २ ॥ एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी हविज्ज दसगुणिया ।
तं सागरोवमस्स उ, एगस्स भवे परिमाणं ॥ ३॥ ४७॥ कठिन शब्दार्थ - अद्धोमिए उपमा से जानने योग्य काल, जोयणविच्छिण्णं - एक योजन का विस्तीर्ण - लंबा, चौड़ा और गहरा, पल्लं पल्य (कुआं), एगाहियप्परूढाणं - एक दिन से लगा कर सात दिन तक के बच्चे के, वालग्गकोडीणं - बालाग्र - बालों के अत्यंत छोटे छोटे टुकडे, णिरंतर णिचियं - अत्यंत ठूंस ठूंस कर, भरियं
भरा जाय, वाससए
सौ वर्षों में, एक्केक्के - एक-एक,
पल्य की, उवमा
उपमा, परिमाणं परिमाण ।
अवहडम्मि निकाला जाय, पल्लस्स भावार्थ - उपमा से जानने योग्य काल दो प्रकार का कहा गया है यथा - पल्योपम यानी पल्य की उपमा वाला और सागरोपम अर्थात् सागर की उपमा वाला। शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन् ! वह पल्य की उपमा वाला काल कौनसा है? तब भगवान् पल्योपम का स्वरूप फरमाते हैं
उत्सेध अंगुल परिमाण से एक योजन का लम्बा चौड़ा और गहरा एक कुआं हो। वह कुआं एक दिन से लगा कर सात दिन तक के बच्चे के अथवा मुण्डन करवाने के बाद एक दिन से लगा कर सात दिन तक बढे हुए बालों के अत्यन्त छोटे छोटे टुकड़े करके खूब अच्छी तरह से ठूंस ठूंस कर भर दिया जाय। फिर सौ सौ वर्षों में एक एक बाल का टुकड़ा निकाला जाय। इसमें जितना समय लगे वह काल पल्योपम जानना चाहिये। यह एक पल्य की उपमा है ।। २ ॥
Jain Education International
-
-
-
श्री स्थानांग सूत्र
000000
-
-
For Personal & Private Use Only
www.jalnelibrary.org