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________________ .१०९ . स्थान २ उद्देशक ३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 आसीविसा, दो सुहावहा, दो चंदपव्वया, दो सूरपव्वया, दो णागपव्वया, दो देवपव्वया, दो गंधमायणा, दो उसुगारपव्यया, दो चुल्लहिमवंतकूडा, दो वेसमणकूडा, दो महाहिमवंतकूडा, दो वेरुलियकूडा, दो णिसहकूडा, दो रुयगकूडा, दो णीलवंतकूडा, दो उवदंसणकूडा, दो रुपिकूडा, दो मणिकंचणकूडा, दो सिहरिकूडा, दो तिगिंच्छिकूडा, दो पउमद्दहा, दो पउमइहवासिणीओ सिरीदेवीओ, दो महापउमद्दहा, दो महापउमइहवासिणीओ हिरीओ देवीओ एवं जाव दो पुंडरीयहहा, दो पुंडरीयद्दहवासिणीओ लच्छीदेवीओ, दो गंगाप्पवायदहा जाव, दो रत्तवईप्पवायहहा, दो रोहियाओ जाव दो रुप्पकूलाओ, दो गाहवईओ, दो दहवईओ, दो पंकवईओ, दो तत्तजलाओ, दो मत्तजलाओ, दो उम्मत्तजलाओ, दो खीरोयाओ, दो सीहसोयाओ, दो अंतोवाहिणीओ, दो उम्मिमालिणीओ, दो फेणमालिणीओ, दो गंभीरमालिणीओ, दो कच्छा, दो सुकच्छा, दो महाकच्छा, दो कच्छगावई, दो आवत्ता, दो मंगलावत्ता, दो पुक्खला, दो पुक्खलावई, दो वच्छा, दो सुवच्छा, दो महावच्छा, दो वच्छगावई, दो रम्मा, दो रम्मगा, दो रमणिज्जा, दो मंगलावई, दो पम्हा, दो सुपम्हा, दो महपम्हा, दो पम्हगावई, दो संखा, दो कलिणा, दो कुमुया, दो सलिलावई, दो वप्पा, दो सुवप्पा, दो महावप्पा, दो वप्पगावई, दो वग्गू, दो सुवग्गू, दो गंधिला, दो गंधिलावई। दो खेमाओ, दो खेमपुरीओ, दो रिटाओ, दो रिट्टपुरीओ, दो खग्गीओ, दो मजुंसाओ, दो ओसहीओ, दो पुंडरीगिणीओ, दो सुसीमाओ, दो कुंडलाओ, दो अपराजियाओ, दो पभंकराओ, दो. अंकावईओ, दो पम्हावईओ, दो सुभाओ, दो रयणसंचयाओ, दो आसपुराओ, दो सीहपुराओ, दो महापुराओ, दो विजयपुराओ, दो अपराजियाओ, दो अवराओ, दो असोयाओ, दो विगयसोगाओ, दो विजयाओ, दो वेजयंतीओ, दो जयंतीओ, दो अपराजियाओ, दो चक्कपुराओ, दो खग्गपुराओ, दो अवज्झाओ, दो अउज्झाओ। दो भहसालवणा, दो गंदणवणा, दो सोमणसवणा, दो पंडगवणा, दो पंडुकंबलसिलाओ, दो अइपंडुकंबलसिलाओ, दो रत्तकंबलसिलाओ, दो अइरत्तकंबलसिलाओ, दो मंदरा, दो मंदरचूलियाओ। धायइसंडस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाइं उहं उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥ ४०॥ कठिन शब्दार्थ - धायइसंडे दीवे - धातकीखण्ड नामक द्वीप में, पुरच्छिमद्धेणं - पूर्वार्द्ध में, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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