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________________ ९१ स्थान २ उद्देशक ३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 यथायु - आयु पूर्ण हुए बिना किसी भी निमित्त से जिनकी आयु कम नहीं होती, उपक्रम नहीं लगता वे यथायु वाले कहलाते हैं। जैसे देव और नैरयिक।। आयु संवर्तक - संवर्त यानी घटना, जो घटता है वह संवर्तक कहलाता है। आयुष्य का जो संवर्तक है वह आयु संवर्तक है। अर्थात् उपक्रम लगने से जिसकी आयु बीच में टूट सकती है वे आयु संवर्तक कहे जाते हैं जैसे मनुष्य तिर्यंच का आयुष्य सात कारणों से टूट सकता है। जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिजेणं दो वासा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णाइवटुंति आयामविक्खंभसंठाण परिणाहेणं तंजहा भरहे चेव, एरवए चेव। एवं एएणं अहिलावेणं हिमवए चेव, हेरण्णवए चेव। हरिवासे चेव, रम्मयवासे चेव। जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमपच्चत्थिमेणं दो खित्ता पण्णत्ता बहुसमतुल्ला अविसेसं जाव पुव्वविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव। जंबूमंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणणं दो कुराओ पण्णत्ताओ बहुसमतुल्लाओ जाव देवकुरा चेव, उत्तरकुंरा चेव। तत्थ णं दो महतिमहालया महादुमा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णाइवटुंति आयामविक्खंभुच्चत्तोव्वेह संठाणपरिणाहेणं तंजहा - कूडसामली चेव, जंबू चेव सुदंसणा। तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव महासोक्खा पलिओवमट्टिईया परिवसंति तंजहा - गरुले चेव, वेणुदेवे अणाढिए चेव जंबूहीवाहिवई॥३४॥ ___ कठिन शब्दार्थ - जंबूहीवे दीवे - जंबूद्वीप में, मंदरस्स - मेरु के, पव्वयस्स - पर्वत के, उत्तरदाहिजेणं - उत्तर और दक्षिण दिशा में, भरहे - भरत, एरवए - ऐरावत, वासा - क्षेत्र, आयामविक्खंभ संठाण परिणाहेणं - लम्बाई, चौडाई संस्थान और परिधि से, बहुसमतुल्ला - अत्यंत समान प्रमाण वाले, अविसेसमणाणत्ता - किंचिन्मात्र भी भिन्नता नहीं है, अण्णमण्णं - परस्पर, णाइवटुंति - अतिक्रमण नहीं करते हैं, हिमवए - हैमवत, हेरण्णवए - हैरण्यवत, हरिवासहरिवर्ष, रम्मयवासे - रम्यकवर्ष, पुरच्छिमपच्चत्थिमेणं - पूर्व और पश्चिम दिशा में, पुव्वविदेहे - पूर्व विदेह, अवरविदेहे - पश्चिम विदेह, देवकुरा - देवकुरु, उत्तरकुरा - उत्तरकुरु, कूडसामली - कूट. शाल्मली, महादुमा - महाद्रुम, महतिमहालया - बहुत विस्तृत, सुदंसणा - सुदर्शना, आयामविक्खंभुच्चत्तोव्वेह संठाण परिणाहेणं - लम्बाई, चौडाई, ऊंचाई, उद्वेध, संस्थान और परिधि से गरुले - गरुड़ देव, वेणुदेवे - वेणुदेव, अणाढिए - अनादृत देव, परिवसंति - रहते हैं, जंबूहीवाहिवई- जंबूद्वीप के अधिपति (स्वामी), महिड्डिया - महान् ऋद्धि वाले, महासोक्खा - महान् सुख के भोक्ता, पलिओवमट्टिईया - एक पल्योपम की स्थिति वाले। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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