________________
स्थान २ उद्देशक ३
नहीं हैं वे नो बद्धपार्श्व स्पृष्ट पुद्गल कहलाते हैं जैसे श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य पुद्गल। आवश्यक सूत्र में कहा है -
पुटुं सुणेइ सई, रूवं पुण पासइ अपुटुं तु। गंध रसं च फासं च बद्ध पुटुं वियागरे॥
अर्थ - श्रोत्रेन्द्रिय स्पृष्ट पुद्गलों को ग्रहण करती है। चक्षुरिन्द्रिय बिना ही स्पर्श किये गये रूप को ग्रहण करती है किन्तु घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय ये तीन इन्द्रियाँ बद्ध स्पृष्ट पुद्गलों को ग्रहण करती हैं।
गंधादि द्रव्यों की अपेक्षा भाषा के द्रव्य सूक्ष्म, विशेष संख्या वाले और वासित स्वभाव वाले होते हैं तथा श्रोत्रेन्द्रिय, विषय को ग्रहण करने में घाणेन्द्रिय आदि की अपेक्षा विशेष पटु होने के कारण स्पर्श मात्र से ग्रहण कर लेती है।. . दुविहे आयारे पण्णत्ते तंजहा - णाणायारे चेव णो णाणायारे चेवाणो णाणायारे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - दंसणायारे चेव, णो दसणायारे चेव। णो दंसणायारे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - चरित्तायारे चेव, णोचरित्तायारे चेव। णोचरित्तायारे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - तवायारे घेव, वीरियायारे घेव। दो पडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा - समाहि पडिमा चेव, उवहाण पडिमा चेव। दो पडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा- विवेगपडिमा चेव, विठस्सगपडिमा चेव। दो पडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा- भद्दा चेव, सुभद्दा चेव। दो पडिमाओ पण्णत्ताओ तं जहा - महाभद्दा चेव, सव्वओभद्दा बेव। दो पडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा - खुड्डिया चेव मोयपडिमा, महल्लिया चेव मोयपडिमा। दो पडिमाओ पण्णताओ तंजहा-जवमाझे चेव चंदपडिमा, वइरमझे चेव चंदपडिमा। दुविहे सामाइए पण्णत्ते तंजहा - अगारसामाइए चेव, अणगारसामाइए चेव॥३२॥
कठिन शब्दार्थ - आयार - आचार, णाणायारे - ज्ञानाचार, णो णाणायारे - नो ज्ञानाचार, दसणायारे - दर्शनाचार, चरित्तायारे - चारित्राचार, तवायारे - तप आचार, वीरियायारे - वीर्याचार, समाहिपडिमा - समाधि प्रतिमा, उवहाण पडिमा - उपधान प्रतिमा, विवेग पडिमा - विवेक प्रतिमा, विठस्सगपडिमा - व्युत्सर्ग प्रतिमा, भद्दा - भद्रा, सुभदा - सुभद्रा, महाभा - महाभद्रा, सबओभहासर्वतोभद्रा, खुडियामोयपडिमा - क्षुद्र मोक प्रतिमा, महल्लिया मोयपडिमा - महती मोक प्रतिमा, चंदपडिमा - चन्द्र प्रतिमा, जवमझे - यवमध्य, वइरमझे - वन मध्य, अगार सामाइए - अगार सामायिक, अणगार सामाइए - अनगार सामायिक।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org