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________________ ७५ अध्ययन १ उद्देशक ८ +000000000000000......................................... विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में 'महुं वा, मजं वा, सप्पिं वा, खोलं वा' पाठ आया है। उसमें मधु, मद्य, घी आदि के नीचे जमा हुआ कचरा। ये पदार्थ पुराने हो गए हों एवं उनमें जीव उत्पन्न हो गए हों तो उन्हें ग्रहण नहीं करना चाहिए। जीव रहित होने पर उन्हें ग्रहण किया जा सकता है। पुराने मधु (शहद), मद्य, घृत आदि औषधियों में काम आते हैं। साधु-साध्वी भी औषधि के रूप में जीव रहित बने हुए इन पदार्थों को ग्रहण कर सकते हैं। आयुर्वेदिक औषधियों में अनेक प्रकार के आसव एवं अरिष्ट को अनेक रोगों में औषधि के रूप में लिया जाता है। ये पदार्थ मद्य के ही रूपान्तर हैं। औषधि के रूप में इन्हें ग्रहण करना कल्पनीय समझा जाता है। स्थानांग सूत्र उद्देशक २ में एवं निशीथ सूत्र के उद्देशक १९ में भी इस संबंधी वर्णन मिलता है। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा-उच्छुमेरगं वा, अंककरेलुयं वा, कसेरुगं वा, सिंघाडगं वा, पूइआलुयं वा, अण्णयरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं जाव णो पडिगाहिज्जा॥ कठिन शब्दार्थ - उच्छुमेरगं - ईख का टुकड़ा, अंककरेलुयं - अंक करेला, कसेरुगंकसेरु, सिंघाडगं - श्रृंगाटक, सिंघाडे, पूइआलुयं - पूतिआलुक। भावार्थ - भिक्षा के लिये गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी इक्षुखंड-गंडेरी, अंक करेला, कसेरु, सिंघाडा या पूतिआलुक आदि तथा जल में होने वाली अन्य वनस्पति विशेष जो कच्ची और शस्त्र परिणत न हो उसे अप्रासुक और अनेषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा-उप्पलं वा, उप्पलणालं वा, भिसं वा, भिसमुणालं वा, पुक्खलं वा, पुक्खलविभंगं वा, अण्णयरं वा तहप्पगारं जाव णो पडिगाहिज्जा ॥४७॥ कठिन शब्दार्थ - उप्पलं - उत्पल-सूर्य विकासी कमल, उप्पलणालं - उत्पल नाल, भिसं - पद्मकंद मूल, भिसमुणालं - पद्म कंद के ऊपर की बेल, पुक्खलं - पद्म केसर, पुक्खलविभंग - पद्म कंद। भावार्थ - भिक्षा के लिये गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु साध्वी उत्पल-सूर्य विकासी कमल, उत्पलनाल, पद्म कंदमूल, पद्म कंद के ऊपर की लता, पद्म केसर अथवा पद्मकंद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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