________________
__ अध्ययन १ उद्देशक ८
७३ .00000000000000.......................................... फल, ताडफल, वल्ली का फल, शतद्रुफल, सल्लकी का फल तथा इसी प्रकार के अन्य फल जो सचित्त हों, शस्त्र परिणत न हुए हों उन्हें अप्रासुक और अनेषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविढे समाणे से जं पुण पवालजायं जाणिज्जा तं जहा-आसोत्थपवालं वा, णग्गोहपवालं वा, पिलुंखुपवालं वा, णिपूरपवालं वा, सल्लइपवालं वा अण्णयरं वा तहप्पगारं पवालजायं आमगं असत्थपरिणयं अफासुयं जाव णो पडिगाहिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - पवालजायं - प्रवाल जात (कौंपल) को, आसोत्थपवालं - पीपल की कौंपल, णग्गोहपवालं - वट वृक्ष की कौंपल, पिलुंखुपवालं - पिप्पली की कौंपल, णिपूरपवालं - नंदी वृक्ष की कोंपल, सल्लइ पवालं - सल्लकी (शल्यकी) की कौंपल।
भावार्थ- गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिये प्रविष्ट साधु या साध्वी पीपल की कोंपल, वट वृक्ष की कोंपल, पिप्पली की कोंपल, नंदी वृक्ष की कोंपल, शल्यकी की कोंपल तथा इसी प्रकार की अन्य कोई भी कोंपल जो सचित्त हो, शस्त्र परिणत न हुई हों तो उन्हें अप्रासुक और अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव समाणे से जं पुण सरडुयजायं जाणिज्जा तं जहा - अंबसरडुयं वा, कविट्ठसरडुयं वा, दाडिमसरडुयं वा, बिल्लसरडुयं वा, अण्णयरं वा तहप्पगारं सरडुयजायं आमगं असत्थपरिणयं अफासुयं जाव णो पडिगाहिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - सरडुयजायं - अबद्धास्थिफल-ऐसे कोमल फल जिनमें अभी तक गुठली नहीं बन्धी हो बिल्लसरडुयं - बिल्व का कोमल फल।। .. भावार्थ - भिक्षा के लिये गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी आम का कोमल फल, कबीठ का कोमल फल, अनार या बिल्व का कोमल फल तथा इसी प्रकार के अन्य कोमल फल जो कि कच्चा और शस्त्र परिणत न हुआ हो तो उसे मिलने पर भी अप्रासुक और अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविढे समाणे से जं पुण मंथुजायं जाणिज्जा तंजहा - उंबरमंथु वा, णग्गोहमंथु वा, पिलंक्खुमंथु वा, आसोत्थमं)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org