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अध्ययन १ उद्देशक ४
३७ .00000000000000000000000000000000000000000000000000000. का अधिक आवागमन होने से ईर्यासमिति का बराबर पालन नहीं हो सकता इस कारण संयम की विराधना होती है। अतः साधु को उक्त कुलों में आहार आदि के लिये नहीं जाना चाहिये। ___ यह कथन सापेक्ष ही समझना चाहिये क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन के द्वितीय उद्देशक में जिन १२ कुलों का निर्देश किया है उनमें उग्र कुल आदि कुलों से आहार लेने का स्पष्ट वर्णन है। यदि इन कुलों में जाने पर संयम में किसी तरह का दोष न लगता हो तो इन घरों से निर्दोष आहार लेने में कोई दोष नहीं है। यहाँ पर निषेध केवल इसलिये किया गया है कि राजघरों में चहल पहल अधिक हो तो उस समय ईर्यासमिति का भलीभांति पालन नहीं किया जा सकेगा। __ प्रस्तुत सूत्र में राजा, क्षत्रिय आदि कुलों में भिक्षा के लिए जाने का निषेध किया है। क्षत्रिय शब्द से चक्रवर्ती, वासुदेव आदि का तथा राजा शब्द से माण्डलिक आदि राजाओं का अर्थ किया गया है। इनके यहाँ का पिण्ड तो राजपिण्ड होने से प्रथम एवं अंतिम तीर्थंकर के साधुओं के लिए निषिद्ध है। शेष छोटे राजा एवं ठाकुर आदि के यहाँ का पिण्ड राजपिण्ड नहीं माना गया है। वहाँ पर नहीं जाने का उपर्युक्त कारण समझना चाहिए।
॥ प्रथम अध्ययन का तृतीय उद्देशक समाप्त॥
प्रथम अध्ययन का चतुर्थ उद्देशक ___ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविढे समाणे से जं पुण जाणिज्जा मंसाइयं वा, मच्छाइयं वा, मंसखलं वा, मच्छखलं वा, आहेणं वा, पहेणं वा, हिंगोलं वा, संमेलं वा, हीरमाणं पेहाए अंतरा से मग्गा, बहुपाणा, बहुबीया, बहुहरिया, बहुओसा, बहु उदया, बहु उत्तिंगपणगदग मट्टिय मक्कडा संताणया, बहवे तत्थ समण माहण अतिहि किवण वणीमगा उवागया उवागमिस्संति, तत्थाइण्णा वित्ती, णो पण्णस्स णिक्खमणपवेसाए वायण-पुच्छणपरियट्टणाणुप्पेहा धम्माणुओगचिंताए से एवं णच्चा तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारिजा गमणाए॥२२॥
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