________________
३४०
आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - आयाणभंडमत्तणिक्खेवणा समिए - आदान भांड मात्र निक्षेपणा समित अर्थात् समिति युक्त, आयाण (आदान) - उठाना, भंडमत्त (भाण्डमात्र) - पात्र आदि, णिक्खेवणा (निक्षेपन) - धरना-रखना।
भावार्थ - तदनन्तर चौथी भावना यह है - जो आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति से युक्त होता है वह निर्ग्रन्थ है। केवली भगवान् कहते हैं जो आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति से रहित है वह प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों का अभिघात करता है, धूल आदि से आच्छादित करता है यावत् उन्हें पीडा पहुंचाता है इसलिए जो आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति से युक्त है वही निर्ग्रन्थ है। यह चौथी भावना है। .
विवेचन - साधक साधना में आवश्यक भण्डोपकरण को यतना से उठाए और रखे तथा यतना पूर्वक उपयोग में ले। अयतना से कार्य करने वाला साधक प्रथम महाव्रत को शुद्ध नहीं रख सकता और पाप कर्म का बंध करता है अतः प्रथम महाव्रत की यह चौथी भावना आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति से युक्त होने की है।
अहावरा पंचमा भावणा, आलोइयपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणालोइयपाणभोयणभोई, केवली बूया अणालोइयपाणभोयणभोई से णिग्गंथे पाणाई वा भूयाई वा जीवाई वा सत्ताई वा अभिहणिज वा जाव उद्दविज वा तम्हा आलोइयपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणालोइयपाणभोयणभोई त्ति पंचमा भावणा॥
कठिन शब्दार्थ - आलोइयपाणभोयणभोई - आलोकित पान भोजन भोजी।
भावार्थ - तदनन्तर पांचवी भावना यह है-जो साधक आलोकित पान भोजन भोजीविवेक पूर्वक देख कर आहार पानी करता है वह निर्ग्रन्थ है। केवली भगवान् कहते हैं कि जो बिना देखे ही आहार पानी का सेवन करता है वह निर्ग्रन्थ प्राणी, भूतों, जीवों, और सत्त्वों का हनन करता है यावत् उन्हें पीडा पहुंचाता है। अतः आलोकित पान भोजन भोजी ही निर्ग्रन्थ है। यह पांचवी भावना है।
विवेचन - साधु साध्वी को बिना देखे खाने-पीने के पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिये। इसके लिये आगमकार ने प्रथम महाव्रत की यह पांचवी भावना फरमाई है। । । ।
एयावता पढमे महव्वए सम्म कारण फासिए पालिए तीरिए, किट्टिए,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org