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अध्ययन १५
३२१ 600000000000000000000000000000000000000000000000000000... मय थाल में ग्रहण करता है। तदनन्तर 'हे भगवन्! आपकी अनुमति है' ऐसा कह कर उन केशों को क्षीर समुद्र में प्रवाहित कर देता है। इधर भगवान् दाहिने हाथ से दाहिनी ओर के और बाएँ हाथ से बांई ओर के केशों का पंचमुष्टिक लोच पूर्ण करके सिद्धों को नमस्कार करते हैं और 'आज से मेरे लिए सभी पापकर्म अकरणीय है' यों उच्चारण करके सामायिक चारित्र अंगीकार करते हैं। उस समय देवों और मनुष्यों की परिषद् चित्रलिखित-सी निश्चेष्ट हो गई थी।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के अभिनिष्क्रमण और सामायिक चारित्र ग्रहण करने का विस्तृत वर्णन किया गया है। भगवान् ने मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी को स्वयंमेव पंचमुष्टि लोच करने के बाद सिद्ध भगवान् को नमस्कार करके समस्त सावध योगों का त्याग करके सामायिक चारित्र ग्रहण किया अर्थात् दीक्षा अंगीकार करके साधना मार्ग पर कदम बढ़ाया। ___ राजकुमार वर्धमान के दीक्षा के विचारों को जानकर शक्रेन्द्र अपने यान विमान से जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में क्षत्रियकुण्डपुर नगर में अवतरित हुआ। सहस्रवाहिनी शिविका (पालकी) का निर्माण किया। राजकुमार वर्धमान को वस्त्रालंकारों से विभूषित करके कल्पवृक्ष के समान बनाया। महोत्सव पूर्वक क्षत्रियकुण्डपुर नगर के मध्य मध्य होते हुए जुलूस ज्ञात खण्ड उद्यान में आया। राजकुमार वर्धमान पालकी से नीचे उतरे। एक तरफ जा कर वस्त्रअलंकारों को उतारा और अपने हाथों से पंचमुष्टि लोच किया। सिद्ध भगवान् को नमस्कार करके सामायिक चारित्र अङ्गीकार किया तब इन्द्र ने उनके कन्धे पर एक देवदूष्य नामक वस्त्र रखा। उस वस्त्रं को लेकर एवं प्रव्रजित होकर भगवान् विहार करने लगे। - दिव्यो मणुस्सघोसो, तुरियणिणाओ य सक्कवयणेण। खिप्पामेव णिलुक्को, जाहे पडिवजइ चरित्तं ॥१॥ पडिवजित्तु चरित्तं अहोणिसी सव्वपाणभूयहियं। साहट्ट लोमपुलया, सव्वे देवा णिसामिंति॥२॥
कठिन शब्दार्थ - तुरियणिणाओ - वादिन्त्रों के स्वर, णिलुक्को - तिरोहित हो गया-स्थगित (बंद) हो गया, अहोणिसी - अर्हनिश-दिन रात, लोमपुलया - रोम पुलकित, णिसामिति - सुनते हैं।
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