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________________ कुछ प्रतियों में 'मज्जावेइ' के पश्चात् 'गन्धकासाएहिं गायाइं लूहेइ लूहित्ता' पाठ भी उपलब्ध होता है जिसका अर्थ है " सुगन्धित मटिया रंग के वस्त्र से उनके शरीर को पोंछा । पोंछ कर" यह पाठ शुद्ध और प्रामाणिक मालूम होता है। इसी तरह "मुल्लं सयसहस्सेणं तिपडोल तित्तिएणं" के स्थान पर 'पलसयसहस्सेणं तिपलो लाभितएणं' पाठ भी उपलब्ध होता है। जिसका अर्थ है तीन लाख पल परिमाण से प्राप्त होने वाला । यह गोशीर्ष चन्दन का विशेषण है। अध्ययन १५ प्रश्न शतपाक सहस्रपाक तथा लक्षपाक तेल किसे कहते हैं ? उत्तर जिस तैल में एक सौ विशिष्ट औषधियाँ और जड़ीबूटियाँ डालकर बनाया गया हो अथवा जिसके एक तोले की कीमत सौ रूपिया हो अथवा सौ मुद्रा हो तथा जो सौ बार उबाल कर बनाया गया हो उसे शतपाक तेल कहते हैं। इसी प्रकार सहस्र ( हजार ) पाक और लक्ष (एक लाख) पाक तेल का अर्थ भी समझना चाहिए । प्रश्न- गोशीर्षचन्दन किसे कहते हैं ? - ३१५ उत्तर - गोशीर्षचन्दन का दूसरा नाम बावना चन्दन है जिसका अर्थ है कि कल्पना की जाय कि किसी एक कढ़ाई में बावन मन तैल गरम किया जा रहा हो उसमें यदि एक तोला बावना चन्दन डाल दिया जाय तो इससे वह तैल एकदम शीतल (ठण्डा) बन जाय ऐसी शीतलता वाले चन्दनं को गोशीर्ष अथवा बावना चन्दन कहते हैं। प्रश्न - सहस्रवाहिनी शिविका किसको कहते हैं ? उत्तर - शिविका का अर्थ है पालकी । जिस पालकी को सहस्र ( एक हजार) पुरुष उठावे उस पालकी को सहस्र वाहिनी पालकी कहते हैं । किन्हीं आचार्यों का मत है कि 'सहस्र वाहिनी का यह अर्थ सर्वत्र लागू नहीं होता है। इसलिए कहीं कहीं पर इसका अर्थ नाम विशेष से है अर्थात् "सहस्रवाहिनी" एक प्रकार की पालकी का नाम है। Jain Education International प्रश्न- ईहामृग किसे कहते हैं ? उत्तर - एक प्रकार के मृग विशेष को ईहामृग कहते हैं । कहीं कहीं पर ईहा और मृग ये दो शब्द रखे हैं वहाँ "ईहा" का अर्थ भेड़िया और मृग का अर्थ हरिण किया है। अष्टापद किसे कहते हैं ? प्रश्न उत्तर आगम में अष्टापद शब्द का प्रयोग पशु के अर्थ में मिलता नहीं है, किन्तु दशवैकालिक सूत्र अ. ३ में बावन अनाचारों में अष्टापद का अर्थ - जूआ खेलना किया है। - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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