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. आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध •••rrorerrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrreste पव्वयदुग्गाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोयणपडियाए णो अभिसंधारिज्जा गमणाए॥
कठिन शब्दार्थ - कच्छाणि - कच्छों में, वणदुग्गाणि - दुर्गम वनों में।
भावार्थ - साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं जैसे - कच्छों-जल बहुल प्रदेशों में, प्रच्छन्न स्थानों में, वृक्षों से सघन प्रदेशों में, वनों में, वन के दुर्गम प्रदेशों में, पर्वतों पर या पर्वतीय दुर्गम प्रदेशों में होने वाले शब्दों तथा इसी प्रकार के अन्य शब्दों को. कान से सुनने के लिये जाने का मन में भी संकल्प न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सदाइं सुणेइ तंजहा - गामाणि वा, णगराणि वा, णिगमाणि वा, रायहाणाणि-आसम-पट्टण-संणिवेसाणि वा, अण्णयराइंवा तहप्पगाराइं सद्दाइंणो अभिसंधारिज्जा गमणाए॥
भावार्थ - साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं जैसे - गांवों में, नगरों में, निगमों में, राजधानी में, आश्रम, पत्तन और सन्निवेशों में तथा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिये जाने का मन में भी संकल्प न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेइ तंजहा - आरामाणि वा, उज्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलाणि वा, सभाणि वा, पवाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं सदाइं णो अभिसंधारिज्जा गमणाए॥
भावार्थ - साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं जैसे कि - आरामागारों में, उद्यानों में, वनों में, वनखण्डों में, देवकुलों में, सभाओं में, प्याऊओं में अथवा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का मन में भी संकल्प न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइं सुणेई तंजहा - अट्टाणि वा, अट्टालयाणि वा, चरियाणि वा, दाराणि वा, गोपुराणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं सदाइंणो अभिसंधारिज्जा गमणाए।
भावार्थ - साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं जैसे कि - अटारियों में, प्राकार से सम्बद्ध अट्टालयों में, नगर के मध्य स्थित राजमार्गों में, द्वारों या नगर द्वारों में तथा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने हेतु जाने का मन से भी संकल्प न करे।
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