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________________ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध भावार्थ - साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने जहां नदी के तट पर बने तीर्थ स्थान हों, पंक (कीचड़ ) बहुल स्थान हों, जलप्रवाह वाले पवित्र स्थान हों, जल सिंचन के मार्ग हों, ऐसे तथा इसी प्रकार के अन्य स्थण्डिल भूमि हों वहां मल मूत्र का विसर्जन न करे । २५८ विवेचन - ऐसे स्थानों पर मल मूत्र के त्याग से अप्काय की विराधना होती है तथा लोक दृष्टि में पवित्र माने जाने वाले स्थानों में मल मूत्र के विसर्जन से घृणा या प्रवचन की निन्दा होती है अतः ऐसे स्थंडिल में साधु साध्वी मल मूत्र का त्याग न करें । सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, णवियासु वा, मट्टियखाणियासु वा णवियासु गोप्पलिहियासु वा, गवाणीसु वा, खाणी वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा ॥ कठिन शब्दार्थ - णवियासु नवीन में, मट्टियखाणियासु मिट्टी की खानों में, गोप्पलिहियासु - गायों के चरने के स्थानों में, गवाणीसु सामान्य गायों के चरने के स्थानों में, खाणीसु - खानों में। भावार्थ - साधु या साध्वी ऐसे स्थंडिल को जाने जहां मिट्टी की नई खाने हों, नई गोचर भूमि हों, सामान्य गायों के चरने के स्थान हों, खाने हों, ऐसे तथा इसी प्रकार के अन्य स्थंडिल भूमि में मल मूत्र का त्याग न करे । सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, डागवच्छंसि वा, सागवच्चंसि वा, मूलगवच्चंसि वा, हत्थंकरवच्वंसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा ॥ - Jain Education International - कठिन शब्दार्थ - डागवच्चसि डाल प्रधान शाक के खेतों में, जिन शाकों में डालियाँ प्रधान हो ऐसे खेतों में, सागवच्वंसि - पत्र प्रधान शाक के खेतों में, मूलगवच्च॑सि - मूली आदि के खेतों में, हत्थंकरवच्च॑सि - हस्तंकर वनस्पति के खेतों में । भावार्थ - साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल भूमि को जाने जहां डालप्रधान शाक के खेत हैं, पत्रप्रधान शाक के खेत हैं, मूली गाजर आदि के खेत हैं, हस्तंकर वनस्पति विशेष के खेत हैं, ऐसे तथा इसी प्रकार के अन्य स्थंडिल भूमि में मल मूत्र का त्याग न करें। For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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