________________
आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
कठिन शब्दार्थ - वेहाणसट्ठाणेसु - मनुष्यों को फांसी आदि पर लटकाने के स्थानों में, गिद्धपिट्ठाणे - जहां पर मरने की इच्छा से गिद्ध आदि पक्षियों के स्थान पर शरीर को रक्त आदि से संसृष्ट करके लेट जाते हों ऐसे स्थानों पर, तरुपडणट्ठाणेसु - तरुप्रपतन स्थान-वृक्ष से गिरकर मरते हों ऐसे स्थानों पर, मेरुपडणट्ठाणेसु पर्वत से गिरने के स्थानों में, विसभक्खणट्ठाणेसु - जहां विष भक्षण कर आत्म हत्या करते हों ऐसे स्थानों पर, अगणिपडणट्ठाणेसु - अग्नि में गिर कर मरते हों ऐसे स्थानों में ।
भावार्थ - साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थंडिल को जाने जहां फांसी पर लटकाने के स्थान हों, गृद्ध आदि के सामने पड़ कर मरने के स्थान हों अथवा हाथी और ऊँट आदि के मरे हुए कलेवर हों उनमें घुसकर तथा शरीर पर लाल रङ्ग लगाना जिसे देखकर गिद्ध आदि पक्षी नोंच नोंच कर खा जाय इस प्रकार के मरण स्थान हों, वृक्ष से गिर कर मरने के स्थान हों, पर्वत से गिर कर मरने के स्थान हों, विषभक्षण करने के स्थान हों या आग में गिर कर मरने के स्थान हों, ऐसे और अन्य इसी प्रकार के आत्म हत्या करने के या मृत्युदंड देने के स्थान हों, वहां मल मूत्र का त्याग न करे ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, आरामाणि वा, उज्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलाणि वा, सभाणि वा, पवाणि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा ॥
२५६
कठिन शब्दार्थ - आरामाणि व्यक्तिगत बगीचा, उज्जाणाणि - सार्वजनिक बगीचा, देवकुलाणि - मन्दिर, पवाणि - प्याऊ ।
भावार्थ - साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थंडिल स्थान (भूमि) को जाने जहां उपवन, उद्यान, वन, वनखण्ड, देवकुल, सभा या प्याऊ हो अथवा इसी प्रकार के अन्य पवित्र या रमणीय स्थान हो वहां मलमूत्र का विसर्जन न करे ।
-
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं : जाणिज्जा अट्टालयाणि वा चरियाणि का, दाराणि वा, मोपुराणि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरिजा ॥
कठिन शब्दार्थ - चरियाणि - चर्या - प्राकार के अंदर आठ हाथ चौडी जगह ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org