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________________ अध्ययन ७ उद्देशक १ बालक, पशु और उनके खाने पीने के योग्य अन्नपानादि से युक्त हो तो बुद्धिमान् साधु के लिए ऐसा स्थान निर्गमन - प्रवेश वाचना यावत् धर्मानुयोग चिंतन के योग्य नहीं है। अतः साधु साध्वी तथाप्रकार के उपाश्रय के विषय में अवग्रह की याचना नहीं करे । २३५ सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा गाहावइकुलस्स मज्झमज्झेणं गंतुं पंथे पडिबद्धं णो पण्णस्स जाव चिंताए से एवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो उग्गहं उगिहिज्जा वा पगिहिज्जा वा ॥ सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णं अक्कोसंति वा तहेव तिल्ल - सिणाणसीओदग - वियडादि णिगियाइ वा जहा सिज्जाए आलावगा णवरं उग्गह 'वत्तव्वया || सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा आइण्णसंलिक्खे णो पण्णस्स जाव चिंताए तहप्पगारे उवस्सए णो उग्गहं उगिहिज्जा वा पगिहिज्ज वा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ॥ १५८ ॥ ॥ पढमो उद्देसो समत्तो ॥ - कठिन शब्दार्थ - णिगियाइ - नग्न होती है, उग्गह वत्तव्वया - अवग्रह की वक्तव्यता, आइण्णसंलिक्खे - चित्रों से आकीर्ण । भावार्थ - साधु या साध्वी यदि ऐसे अवग्रह को जाने जिसमें जाने का मार्ग गृहस्थ के घर के बीचों बीच से जाता है तो प्रज्ञावान् साधु का ऐसे स्थान में निकलना और प्रवेश करना यावत् धर्मानुयोग चिंतन के लिए योग्य नहीं है। अतः ऐसे उपाश्रय की अवग्रह अनुज्ञा ग्रहण नहीं करे । Jain Education International बुद्धिमान् साधु साध्वी जिस उपाश्रय में गृहपति यावत् उनकी दासियाँ परस्पर आक्रोश करती हों-लड़ती झगड़ती हों, तैलादि की मालिश करती हों, स्नानादि करती हों, नग्न हो कर बैठती हों, आदि वर्णन शय्या अध्ययन के आलापकों की तरह यहाँ समझ लेना चाहिये । इतना विशेष है कि वहाँ शय्या के विषय में वर्णन है तो यहाँ अवग्रह के विषय में है अर्थात् इस प्रकार के उपाश्रय की भी साधु याचना न करे । साधु साध्वी ऐसे उपाश्रय के बारे में For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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