________________
अध्ययन ५ उद्देशक २
२१५ ••••••••••••••••••••••••••••••••••••.....................
कठिन शब्दार्थ - मुहत्तगं - मुहूर्त मात्र का, पाडिहारियं - प्रातिहारिक, विप्पवसियठहर कर, पलिच्छिंदिय - छेदन करके, ससंधियं - ससंधित-जोड़ा हुआ।
भावार्थ - कोई साधु साध्वी मुहूर्त आदि नियत काल के लिये किसी अन्य साधु साध्वी से प्रातिहारिक वस्त्र की याचना करता है और एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन अथवा पांच दिन तक अन्य किसी ग्रामादि में निवास कर वापिस आता है और वह वस्त्र उपहत (खराब) हो जाता है तथा वह साध जिसका वह वस्त्र था लेना स्वीकार नहीं करे तो उस वस्त्र को परस्पर न देवे, उधार भी नहीं करे और न अदला बदली करे तथा न ही अन्य किसी के पास जाकर यह कहे कि आयुष्मन् श्रमण! आप इस वस्त्र को ले लो। वस्त्र के दृढ़ होने पर उसके टुकड़े टुकड़े करके परठे भी नहीं, किन्तु उपहत वस्त्र उसी को दे दे। स्वयं न भोगे। - विवेचन - जो लेकर पुन: उसी को दिया जाए उसे 'प्रातिहारिक' कहते हैं। प्रातिहारिक वस्त्र यदि फट गया है या मैला हो गया है तो वह वस्त्र का स्वामी उस वस्त्र को उपहत करने वाले उसी साधु को दे दे।
से एगइओ तहप्पगारं णिग्योसं सुच्चा णिसम्म जे भयंतारो तहप्पगाराणि वत्थाणि ससंधियाणि मुहुत्तगं मुहुत्तगं जाइत्ता जाव एगाहेण वा जाव पंचाहेण वा विप्पवसिय विप्पवसिय उवागच्छंति तहप्पगाराणि वत्थाणि णो अप्पणा गिण्हंति णो अण्णमण्णस्स दलयंति अणुवयंति, तं चेव जाव णो साइजंति बहुवयणेण भाणियव्वं से हंता अहमवि मुहुत्तगं पाडिहारियं वत्थं जाइत्ता जाव एगाहेण वा जाव पंचाहेण वा विप्पवसिय विप्पवसिय उवागच्छिस्सामि, अवियाई एयं ममेव सिया माइट्ठाणं संफासे णो एवं करिज्जा॥१५०॥
कठिन शब्दार्थ - बहुवयणेण - बहुवचन से, माइट्ठाणं - मातृ स्थान को, माया कपट को।
. भावार्थ - कोई साधु साध्वी इस प्रकार के शब्द को सुन कर अर्थात् अमुक साधु अमुक साधु से कुछ समय के लिए वस्त्र मांग कर ले जाता है और एक दिन से लेकर पांच दिन तक किसी ग्राम में निवास करके आता है तब वह वस्त्र उपहत हो जाने पर वह उसे ग्रहण नहीं करता है अपितु उसी को दे देता है। बहुवचन-बहुत से साधुओं के संबंध में भी इसी तरह समझना चाहिए। ऐसा सुन कर वस्त्र हड़पने की भावना से यह विचार करे कि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org