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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध torrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr
भावार्थ - ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु-साध्वी को मार्ग में कोई प्रातिपथिक इस 'प्रकार पूछे कि - "हे आयुष्मन् श्रमण! तुमने मार्ग में गेहूँ आदि धान्य या विभिन्न सेनाओं के पड़ाव आदि देखे हैं ? देखे हों तो कहो। ऐसे समय साधु अथवा साध्वी मौन रहे यावत् यतना पूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया 'जाव आउसंतो समणा! केवइए एत्तो गामे वा जाव रायहाणी वा से आइक्खह। तहेव जाव दूइज्जिजा॥
__ भावार्थ - ग्रामानुग्राम विचरते हुए साधु-साध्वी को मार्ग में कोई प्रातिपथिक पूछे कि . हे आयुष्मन् श्रमण! यहाँ से अमुक ग्राम यावत् राजधानी कितनी दूर है? कहो तो साधुसाध्वी मौन रहे और 'मैं जानता हूँ किन्तु तुम्हें बताता नहीं हूँ' ऐसा न कहे यावत् यतना के साथ ग्रामानुग्राम विहार करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया जाव आउसंतो समणा! केवइए एत्तो गामस्स वा णगरस्स वा जाव रायहाणीए वा मग्गे से आइक्खह। तहेव जाव दूइजिजा॥१२९॥
भावार्थ - मार्ग में विहार करते हुए साधु-साध्वी से कोई इस प्रकार पूछे कि-हे आयुष्मन् श्रमण! अमुक गांव यावत् राजधानी का रास्ता कौन सा है, उसे बतलाओ तो साधु-साध्वी उसका उत्तर न देते हुए मौन वृत्ति से ग्रामानुग्राम विहार करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से गोणं वियालं पडिपहे पेहाए, जाव चित्तचिल्लडं वियालं पडिपहे पेहाए णो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छिज्जा, णो मग्गाओ उम्मग्गं संकमिज्जा, णो गहणं वा वणं वा दुग्गं वा अणुपविसिज्जा, णो रुक्खंसि दुरुहिज्जा णो महइमहालयंसि उदयंसि कायं विउसिज्जा, णो वाडं वा सरणं वा सेणं वा सत्थं वा कंखिज्जा। अप्पुसुए जाव समाहिए तओ संजयामेव गामाणुगामं इज्जिज्जा।
कठिन शब्दार्थ - भीओ - भयभीत हुआ। भावार्थ - ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु अथवा साध्वी मार्ग में विकराल बैल, चीते,
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