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' आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध worwarrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr दुप्पण्णवणिज्जाणि, अकालपडिबोहीणि, अकालपरिभोईणि सइ लाढे विहाराए संथरमाणेहिं जणवएहिं णो विहारवत्तियाए पवज्जिज्जा गमणाए। केवली बूयाआयाणमेयं, तेणं बाला 'अयं तेणे, अयं उवचरए अयं तओ आगए' त्ति कट्ट तं भिक्खं अक्कोसिज वा जाव उद्दविज वा, वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं अच्छिंदिज वा भिंदिज्ज वा अवहरिज वा परिढविज वा। अह भिक्खूणं पुब्बोवइट्ठा पइण्णा जं णो तहप्पगाराणि विरूवरूवाणि पच्चंतियाणि दस्सुगायतणाणि, जाव विहारवत्तियाए णो पवजिज्ज वा गमणाए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा॥११५॥
कठिन शब्दार्थ - पच्चंतिगाणि - प्रत्यन्त-देश की सीमा में रहने वाले-सीमावर्ती, दस्सुगायतणाणि- दस्युओं-चोरों के स्थान, मिलक्खूणि - म्लेच्छों के स्थान, दुस्सण्णप्याणिजिन्हें कठिनता से आर्य-आचार समझाया जा सके ऐसे अनार्य लोगों के स्थान, दुप्पण्णवणिज्जाणि -- जिन्हें कठिनाई से समझाया जा सके-जड़, ऐसे लोगों के स्थान, अकालपडिबोहीणि - कुसमय-रात्रि में जगने वाले-घूमने वाले, अकालपरिभोईणि - अकालभक्षी-अकाल में भोजन करने वाले, सइ लाढे - अन्य आर्य देश के, संथरमाणे - विद्यमान होने पर, जणवएहिं - अच्छे देश के होने पर, विहारवत्तियाए- विहार की प्रतिज्ञा से, गमणाए - जाने का, णो - न, पवजिजा - मन में विचार करे, तओ - वहाँ से, आगए - आया है, अच्छिंदिज - छेदन करेंगे, भिंदिज - भेदन करेंगे, अवहरिज - छीन लेंगे, परिदृविज - तोड़-फोड़ कर फैंक देंगे। •
भावार्थ - साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ जिस मार्ग में विभिन्न देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले चोरों, म्लेच्छों और अनार्यों के स्थान हों तथा जिन्हें कठिनाई से समझाया जा सके ऐसे हठीले, जड़, अकाल में जागने वाले, अकाल भक्षी मनुष्य रहते हों, तो अन्य अनुकूल आर्य क्षेत्र के होते हुए ऐसे क्षेत्रों में विहार करने की मन से भी इच्छा न करे। क्योंकि केवली भगवान् ने 'इसे कर्मबंध का कारण कहा है। अनार्य लोग साधु को देखकर उन्हें 'यह चोर है, चोर का सहयोगी, गुप्तचर है अथवा हमारे शत्रुओं के पास से आया हुआ है', ऐसा कहकर उस साधु को कठोर वचन कहेंगे यावत् मारेंगे पीटेंगे अथवा उस मुनि के वस्त्र-पात्र, कम्बल और रजोहरणादि का छेदन भेदन या अपहरण
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